सौन्दर नन्द काव्य सानुवाद | Saundar Nand Kavy Sanuvad
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
306
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about सूर्यनारायण चौधरी -Suryanarayan Chaudhary
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका १५
कालिदासे शतिरिक्त दुसरे शतेकं कफविर्योने श्वघोषके
पद्य झापनी कृतियोंमें उद्धृत क्ये हैं। बौद्ध कवि माठचेट श्रौर
श्रायंशूर पर श्रश्वघोषका प्रभाव लक्षित होता है । बाणुने भी उनसे
उपमाएँ ली हैं--
निराश्रयस्य ...हवाम्धरस्य वियत्मधौमिव निरवलम्बत्तया
--सौ० १०।६। ह०च० ८ (्नुवादे पष्ठ ९५५)
मल जज्ञे ` साधुरिवो- स्नेहमलमिदममलैः ....
भ्जिद्िषुः । ` श्वम्बुभिः स्षालयिततुम् ।
सो० १०।३। ह०० ६ (अनुवाद पष्ठ ५५) ।
रब उपनिषद् ° और सोन्दरनन्द् से मिलते-जुलते
कुछ वाक्य यहाँ उद्ध,त किये जाते हैं ।
कालः स्वमाषो नियतिययंदच्छा तानि योनिः पुरूष दति चिन्त्यम् ।
सयोग एषां न स्वारममावात् श्राष्माप्यनीशः खुखडुःखदेतोः ॥
--रवेताश्वतर उपनिषद. १।२।
प्रवृत्तिदुःखश्य च तस्य लोके ठृष्णादयो दोषगणा निमित्तस् ।
नेवेश्वरो न प्रङृतिनं फालो नापि स्वभावो न विधिर्यद्च्छा ॥
--सो० १६।१७]
स यदा शङुनिः सूत्रेण प्रबद्धो दिशं दिशं पतिर्वान्यत्नायतन-
मलब्ध्वा बन्धनसेवोपक्नयत । --छ्कार्दोग्य उपनिषद् ।
सप्रेण बद्धो हि यथा विहङ्गो व्यावतंते दूरगतोऽपि भूयः ।
श्रजञानसूप्रेण तथाघवद्धो गतोऽपि दुरं पुनरेति लोकः ॥
-सौ० ११।५६१
User Reviews
No Reviews | Add Yours...