सौन्दर नन्द काव्य सानुवाद | Saundar Nand Kavy Sanuvad

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Saundar Nand Kavy Sanuvad by सूर्यनारायण चौधरी -Suryanarayan Chaudhary

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका १५ कालिदासे शतिरिक्त दुसरे शतेकं कफविर्योने श्वघोषके पद्य झापनी कृतियोंमें उद्धृत क्ये हैं। बौद्ध कवि माठचेट श्रौर श्रायंशूर पर श्रश्वघोषका प्रभाव लक्षित होता है । बाणुने भी उनसे उपमाएँ ली हैं-- निराश्रयस्य ...हवाम्धरस्य वियत्मधौमिव निरवलम्बत्तया --सौ० १०।६। ह०च० ८ (्नुवादे पष्ठ ९५५) मल जज्ञे ` साधुरिवो- स्नेहमलमिदममलैः .... भ्जिद्िषुः । ` श्वम्बुभिः स्षालयिततुम्‌ । सो० १०।३। ह०० ६ (अनुवाद पष्ठ ५५) । रब उपनिषद्‌ ° और सोन्दरनन्द्‌ से मिलते-जुलते कुछ वाक्य यहाँ उद्ध,त किये जाते हैं । कालः स्वमाषो नियतिययंदच्छा तानि योनिः पुरूष दति चिन्त्यम्‌ । सयोग एषां न स्वारममावात्‌ श्राष्माप्यनीशः खुखडुःखदेतोः ॥ --रवेताश्वतर उपनिषद. १।२। प्रवृत्तिदुःखश्य च तस्य लोके ठृष्णादयो दोषगणा निमित्तस्‌ । नेवेश्वरो न प्रङृतिनं फालो नापि स्वभावो न विधिर्यद्च्छा ॥ --सो० १६।१७] स यदा शङुनिः सूत्रेण प्रबद्धो दिशं दिशं पतिर्वान्यत्नायतन- मलब्ध्वा बन्धनसेवोपक्नयत । --छ्कार्दोग्य उपनिषद्‌ । सप्रेण बद्धो हि यथा विहङ्गो व्यावतंते दूरगतोऽपि भूयः । श्रजञानसूप्रेण तथाघवद्धो गतोऽपि दुरं पुनरेति लोकः ॥ -सौ० ११।५६१




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