हंस मयूर की आलोचना का उत्तर | Hansh Mayur Ki Aalochana Ka Uttar

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Book Image : हंस मयूर की आलोचना का उत्तर  - Hansh Mayur Ki Aalochana Ka Uttar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| १४. | भक ~ ७ 4 [क मो श जे (~. ५५ री जिसके चलाने मे अनगिनत बोद्ध ओर जेन विद्वानों का काफ़ी हाथ रहा है. | मिकखु जी ने 'हंसमयूर' की भूमिका के लेखक श्री डॉक्टर असरनाथ का को भी कुछ खोटीं सुनाई हैं। जब दूसरों पर चोट करने के लिये दुर्वासा सदश ऋषि उतर पड़ते ह, तव वे जो कु भी न कह डलं, थोड़ा है । मानव प्रकृति है । क्रोध आया नहीं कि विवेक गया । परन्तु दुबाँसा, या विश्वामित्र; ऋषियों मे अपब।द्‌ है, इसोलिये भिक्खु जौ से विवेक की प्राथना की है. । रौर क्या उस विवेक को वह रूप सिले जो मिक्लु जी ने अपनों आलोचना में दिया है. ? मिक्‍्खु जी का एक प्रचण्ड आक्षिप है कि ऐसी पुस्तकों से क्या लाभ है ? वे कहते हैं कि ऐसी पुस्तक घोर साम्प्रदायिक विद्वेष फैलाती है। विज्ञान और विवेक अन्ध परम्परा और ्रममूलक विश्वासों को आरम्भ में घक्का देता ही है। स्वतन्त्र भारत में भी यदि विवेक और विज्ञान का दृष्टिकोण व्यापक न बनाया जा सका तो फिर कब बनेगा ? यदि 'हंसमयूर' में कही गई घटनायें विवेक और विज्ञान- मनोधिज्ञान-के विरुद्ध हों, इतिहास के प्रतिकूल हों ( प्रभावक चरित को इतिहास न मानने के लिये विवश हूं ) तो भिक्‍खु जी को ही अपना पद्च बनाता हूँ, जो प्रायश्चित कहें करने को तैयार रहूंगा । और यदि उनकी आलोचना विवेक, मनोविज्ञान और इतिहास के प्रतिकूल हो तो डॉक्टर भा से तो वे खेद प्रकट करें




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