विनोबाके विचार [दुसरा भाग] | Vinobake Vichar [Dusra Bhaag]
श्रेणी : इतिहास / History
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१८ पिगोपारे पिचार
ऐसा पोई नियम नहीं है। यट सय सुविधावा सायाल है । इसएिए दुष्टि-
भदयै पारण यर्मीगरणमें धतर होगा रयामाविय है। स्सोरें' पियें हुए
तीन विभाग तो आवस्यर ही है, ऐसी पाई यान नहीं है ; गयावि ऐसा पहा
जा सता हैं पि मनुप्ययो पया व्यगि-सिद्मण प्रौर मया य्ययहार शिक्षण
बाहरगे मिलता है। पेयद निमगं-दि्षण ही भीतर मिलता हं। इस
दृच्टिंगे, झगर हम ब्रा -शिक्षण भौर बाहादिलण ये दो विभाग परे तो
गया हमें है?
परतु इसे भी भागे चड़पर यट भी गढ्ा जा समता हैं दि बाह्मशिक्षण
पेवल प्रमावारणपः पिया र प्रौर प्रा-रिक्षण हौ भायस्प टै। इसलिए
पिदाणया पटो एवमाय यथाय प्रयया तास्विप विभाग ६। मने जिभे
याह दिक्षण पटा र, वट पेवठ मनुष्ये भ्रषवा पाटशारार्मे हौ नहा
मिरुता। ट् दिक्षण र प्रत विध्व प्रत्यय पदार्थे गिरतर भिल्ताही
रहता हैं। उसम पभी विराम नदी होता । जामि पोषरपौयरने बहा ?,
वदते हए भरना प्रासादिव प्रय गचित है, पत्वरोम ददान चपि हुए है
भौर मच्चयावत् पदार्ोमें शिक्षापे सारे तत्व रप्रि्ित दै ।'* वृधा, व7स्पति,
पू-क, नदिया, पवत, श्राव, तारे--सभौ मनुप्यवो भरपने-प्रपने ढगते
शिक्षा दते हैं। नैयापिवावे भणुस ठेयर सास्यावे महत्तत्वतक, भूमिति
(रेखागणित) बे चिदुने लेवर भूगोलके सिंघुतन, या छुटपनकी भापाम
हे, ता 'रामजीवी चोटीसे रेयर तुलसीये' मूख' तप सारे छोटे-यड पदार्थ
मतुप्यवे' गुरू हैं । विचक्षण विज्ञान-वेत्ताोंवे दवूर-चक्षु (दूरवौन) से, व्यव-
हार विदारदोषे चमंचशुे, षत्पना-नू रार ववियांकि दिव्य-चकषु से या ताविय
तत्त्व-वेत्ताभांवे ज्ञापनवद्ुसे जो-जो पदार्थ दृप्टिगोचर होते होगे--मथवां
न भौ होते हाग-- उनसव पदाति हमें नित्य पाठ मिछ रहे हैं। सृप्टि-
परमेश्वरः द्वारा हमारे श्रव्ययनये- लिए हमारे सामने सौलयर रक्वा हमरा
एव श्ाएदवत, दिव्य, श्रादचर्यंमय, परम पवित्र प्रथ ह ¦ उसवे सामने वेद
व्यर्थ है, चुरान बेवार हैं, बाइविल निर्देल हैं ! लेकिन यह प्रथ-गगा चाहे
कितनी ही गभीर् कया न हो मनुष्य तो भपने छोटेसे ही उसका पानी लेगा ।
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