गांधी - अभिनंदन - ग्रंथ | Gandhi - Abhinandan - Granth

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Gandhi - Abhinandan - Granth by डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन - Dr. Sarvpalli Radhakrishnan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सवंपहली राधाकृष्णन्‌ ५, इसका जवाब हाँ भी होगा और नहीं भी । नहीं, इसलिए कि गांधीजी को गृप्ततम अथवा दूरतम कोई भी वाणी कुछ कहती सुनाई नहीं देती । हाँ, इसलिए कि उनको उत्तर मिला जान पड़ता है, वह अपने आपको एेसा सन्तुष्ट अनृभव करते हुं किं उनको उत्तर मिरु गया हो । वह मिला हुआ उत्तर इतना तकं-शुद्ध भी होता है कि जिससे वह परख लेते हैं कि में अपने ही स्वप्नों या कल्पनाओं का शिकार तै नहीं हुआ । ““एक अलक्षणीय रहस्यमय चविति ह जो वस्तु-मात्र मे व्याप्त है । में इसे देखता नहीं, परन्तु इसे अनुभव करता हूँ । यह अदृष्ट शक्ति अनुभवद्वारा ही गम्यह । प्रमाणों से इसकी सत्ता सिद्ध नहीं हो सकती, क्योंकि मेरी इ्द्रियों से गम्य जो कुछ भी है उस सबसे यह रक्ति स्वंथा भिन्न है। इसकी सत्ता बाह्य साक्षी से नही, प्रत्युत उन व्यक्तियों के कायापलट से--उनके जीवन व व्यवहार से--सिद्ध होती है, जिन्होंने अपने अन्त:करण में ईइवर का अनुभव कर लिया हू । यह साक्षी पैग्रम्बरों और ऋषियों की अविच्छिन्न शुंखला के अनृभवों से, सब देशो ओर सब काटो मे, निरन्तर मिख्ती रही ह । इस साक्षी को अस्वीकार करना अपने आपको ही अस्वीकार करना हं । ' १ “यह्‌ युक्ति या तकं का विषय कभी नहीं बन सकता । यदि आप मूझे औरों को युक्ति द्वारा विदवास करा देने को कहें तो में हार मानता हूँ; परन्तु में आपसे इतना कहें देता हूँ--आप और में इस कमरे में बैठ हें, इस सचाई से भी अधिक--मुझे उसकी सत्ता का निष्चय है । में यह भी कहता हूँ कि में बिना हवा और पानी के जी सकता हैँ, परन्तु उसके बिना नहीं । आप मेरी आँखें निकाछ लें, में मखूँगा नहीं । आप मेरी नाक काट लें, में करूँगा नहीं । परन्तु ईदवर में मेरे विइवास को उड़ा दें तो में मरा ही पड़ा हूं ।'*२ हिन्दू-षमं की महती आध्यात्मिक परम्परा के अनुसार, गांधीजी दुढ़तापुर्वक कहते हैं कि जब हम एक बार अपनी पादाविक वासनाओं द्वारा होनेवाले पतन की गहराई से उपर उठकर आध्यात्मिक स्वतन्त्रता की ऊंचाई पर पहुँच जाते हूं तब जीव- मात्र में सम-दृष्टि होजाती है । यह ठीक है कि पवेत-शिखर पर चढ़ने के मागें विभिन्न हैं, हम जहाँ-कहीं हों वहीसे ऊपरको चढ़ना पड़ता है। परन्तु हम सबका लक्ष्य एक ही है । “इस्लाम का अल्लाह वहीं है जो ईसाइयों का गॉड और हिन्दुओं का ईदवर है । जिस प्रकार हिन्दू-धर्म में ईश्वर के नाम अनेक हैं, उसी प्रकार इस्लाम में भी अल्लाह के बहुत-से नाम हैं । इन नामों से व्यक्तियों की अनेकता नहीं, बल्कि उनके गुण प्रकट होते हैं । मनुष्य तो अल्प है, मगर उसने अपनी अल्पता से ही उस महान्‌ शक्तिशाली परमेश्वर को उसके नाना गुणों द्वारा बखानने का यत्न किया है, यद्यपि वह सर्वथा गुणातीत, वर्णनातीत और मानातीत हैं । ईश्वर में सजीव विद्वास का परिणाम सब १. 'यंग इण्डिया; ११ अक्तूबर १९२८. २. हरिजनः; १६ मई १९३८,




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