अपश्चिम तीर्थकर महावीर भाग 1 | Apachim Tirthakar Mahaveer Bhag -1
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9.57 MB
कुल पष्ठ :
256
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उपर हीवकर सहादीर:“ के नाना तीर्थकर पहावीर - 9
अपस्विम तीर्थंकर महावीर न # पाप
स्वप्न-वर्णन! वात्सल्य से आप्लावित हो, महारानी त्रिशला शय्या पर
बैठी चिन्तन कर रही थी । चिन्तन करते-करते न जाने कब निद्रा आ
गई।
वस्तुतः स्वप्न शब्द अपने-आप में बड़ा महत्त्वपूर्ण है। स्वप्न के
सम्बन्ध में अनेक जिज्ञासाएं प्रादुर्भूत होती रहती हैं । गणधर गौतम के
मन में भी स्वप्न के सम्बन्ध में जिज्ञासा हुई । उन्होंने भगवान महावीर
से पूछा- भंते! स्वप्न कित्तने प्रकार के होते हैं? भगवान् ने फरमाया,
गौतम! स्वप्न पांच प्रकार के बतलाये हैं । यथा-
(1) यथातथ्य स्वप्न (2) प्रतान स्वप्न
(3) चिन्ता स्वप्न (4) तदृ्विपरीत स्वप्न
-(5) अव्यक्त स्वप्न ं
(1) यथातथ्य स्वप्न :- स्वप्न में जिसको देखा उसी रूप में
शुभाशुभ फल की प्राप्ति होना यथातथ्य स्व है|
(2) प्रतान स्वप्न :- विस्तार वाला स्वप्न देखना। यह
सत्य-असत्य दोनों हो सकता है।
(3) चिन्ता स्वप्न :- जागय्रत अवस्था में जिसका चिन्तन किया,
उसे स्वप्न में देखना |
(4) तदृविपरीत स्वप्न :- स्वप्न में जो देखा उसके विपरीत
फल की प्राप्ति होना। जैसे स्वप्न में किसी ने अपना
शरीर अशुचि से लिपटा देखा। जाग्रत होने पर वह
अपना शरीर चन्दन से लिप्त करे।
(5) अव्यक्त स्वप्न :- स्वप्न में देखी हुई वस्तु का अस्पष्ट ज्ञान
होना।
इन पांच स्वप्नों में से संवृत अणगार (सर्वविरति साधु) यथातथ्य
स्वप्न देखता है। शेष सम्यक्दृष्टि श्रावकादि सभी सत्य, असत्य दोनों
प्रकार के स्वप्न देखते हैं । भगवान् से उत्तर श्रवण कर गौतम स्वामी
चले जाते हैं। इसके अतिरिक्त ये स्वप्न क्यों आते हैं? इस संदर्भ में
स्वप्न आने के नौ निमित्त साहित्य में मिलते हैं। यथा -
(1) जिन वस्तुओं की अनुभूति की हो।
(2) जिसके बारे में पूर्व में श्रवण किया हो |
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