लोई का ताना 1957 | Loyee Ka Tana 1957
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.83 MB
कुल पष्ठ :
159
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उपसंहार से पहले
बलूचिस्तान दिंगलाज में देवी मंदिर के बादर दो श्रादमी बातें कर रहे थे।
“तुम कहाँ जाश्रोगे १?
'में बढ़ी ज्वालामुखी तक यात्रा करने जाऊंगा ।”
'वह तो ईरान के भी पार है न ?
हाँ कोहकाफ के पास है ।?
'कोहकाफ ! वहां की तो परियाँ प्रसिद्ध हैं ?'
मैं वाममागों नहीं हूँ । मुके परियों से क्या काम £”?
'स्री से काम सदा दी पड़ना चाहिये,” पहले वाले ने कहा श्रौर कदते
हुए. मुश्कराया |
इसी समय घोड़े पर सवार एक श्रादमी श्राकर वहाँ उतरा । उसने मुँह
पर साफे का छोर ऐसे बाँघ रखा था कि ढाठा सा लगता था ।
“रे कौन है भाई ?”
'मुक्ते नहीं पदंचाना ?” कह कर उसने ठाटा खोल दिया |
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