केसरिया पगड़ी | Kesariya Pagadee
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
119
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)म
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भ
अं
--4
१ (४
फिर थी हमें यद्ध भली माति तमम लेना चाहिए कि उप परे
विवाह करना सदा पानक तैमा । नमगी- ताना प्रदेस सय
मान-मम्मान गार उचा ओटृदा य सय दमीलिण > छितर त्मा
सगर्ित शक्ति के सम जे अपने को निवत मनना है
7
सम्क्षना है । एर साल चलते के पह हे व नीता
“मुझे उगने काबुल के 'यमरद नामक थाने पर लिये किया
है । मुझे सपरिवार वहा जाना है । थे सिफ युपसाज प्रीतिर् गो
यहा पर छोड़ कर जाऊंगा । तिन दुर्गायास जी, ट्म सर उष
विस्मृत करना चाहिए कि ग्रीगमजेय हमसे प्रतिलोय तले तेगा?
वह् मिनान्त वहुरपिया है । उसके हृदय में समरत हिन्दू जाति हे
प्रति उग्या है । वह उस जाति के गौरव को समूल मिटाना चाहता
है ।''
महाराणा चितातुर हो गये । वे स्वय मे विन्पृत से कालीय
श्राच्यत् फर्षे पर चहन कदमी करने लगे । दुर्गादा राटोद उनके चिता-
तुर झ्रानन को देख रहे थे 1 देखते-देखते वे भी बोले, “ग्राप निश्चित
रहिए । में भी श्रापके संग जमरूद के थाने चजुगा ।
“वहा मैं अपने चुने हुए योद्धा को भी साय रउू गा । यह
मैंने पहले से ही निश्चय कर लिया है ।”'
“फिर कब प्रस्थान किया जावेगा ?”
शीघ्र ही 1
दुर्गादास ने महाराजा से आजा ली ।
अपनी हवेली में श्राकर वे श्रात से पलग पर पउ गये । सोचने लगे--
महाराज उसका कितना श्रादर करते है। उसकी बातत का कितना वध्वाम् करते
है। उसे बितना वीर गौर स्वामी भदत मानते है। सीर एक ये उसके पिता
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