गर्जन १९४१ | Garjan(1941)
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
170
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गजेन 4
शूलपाणि की एक प्रेयसी थी यवनी कीटा, जिसका नाम उसने
बदलकर उसके रूप के अनुरूप 'फेनका' रख दिया था । फेनका
वदेरु क एक पोतस्वामी की कन्या थी जिसे उसने उसके पिता
से छीन लिया था । फेनका युषती थी, सन्दरी, शल्हङ़ । उसने
समुद्रौ को पार किया था पिता के पोतो में और विक्रान्त
जलदस्यता देखी थी दक्षिण महासागर के वत्त पर । परन्तु अन्तिम
संघर्ष में वह शूलपाणि के शौर्य पर रीक गदं थी दुद्धषं साम-
रिक यवनों की विशाल नौका पर जब शुल्षपाणि की हिंखिका चढ़
दौडी थी ओर जब स्वयं वह् कृष्णएकाय दुर्दम्य दस्यु एक करसे
कीटा को घ्लीन दूसरे से असि-सच्चालन करने लगा था) कीटा स्वयं
उसकी शक्ति पर आसक्तं दो यवनो के पराव की कामना करने
लगी थी । जब उसके पित्ता का पोत आहतो को लिये धीरे-धीरे
सागर के उद्र में बैठ चला, उसने दुःखभरी साँस ली, फिर
पना सुख उसने द्स्युरान् के वक्ष में छिपा लिया । शूल्पाणि
कै घने सोरपंखों ने क्रीटा के पिंगल केशों में अपनी नील्न-स्वर्दिम
राभा डाली |
फेनका शूलपाणि की सखीः थी, प्रेयसी दही नदीं। उसमे भी
शूलपाणि की भाँति ही एक दुदेमनीय शक्ति थीं। समुद्र की
लहरियो से उसका सख्य था । साहस की वह् मूर्तिं थी । जव से
उसका पिता बावेरु के नगरों को छोड़ सामुद्रिक पोतों का स्वामी
वणिकू बना तभी से फेनका ने भी सागर की. लहरों से बन्धुत्व
किया) अब जब से वह शूलपाणि-से शक्तिशाली जलदस्य की
रूपगभां भ्रणयिनी बनी थी, स्वयं उसके पोतसमूह का सद्चालन
करती, उसके श्र क्रमणो म योग देती)
धीरे-धीरे युग बीत गया । शूलपाणि वृद्ध हो चला, फेनका
प्रौढ़ा दो चली । 'ब फेनका को धीरे-धीरे सागर से:-अरुचि हो
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