मल्लि जिन | Malli Jin
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
159
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
कल्याण ऋषी - Kalyan Rishi
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शान्त प्रकाश - Shant Prakash
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)?-युक्टयाज महाबल
श्री “लाया धम्मकहा', सूत्र के आठवें अध्ययन का वणन
करते हुए श्याचार्य सुधर्मा-स्वामी अपने सुशिष्य जम्यू स्वामी को
वता रहे हैं कि वीतशोका राजधानी के सुशासक महाराज वल,
धारिणी देवी प्रमुख श्रपने विशाल अन्न पुर के साथ सानन्द रहा
करते थे ।
तए णं सा धारिणी देधी अन्न कयाई सीहं सुमिणे
पासित्ता पडिचुद्धा ० ˆ“ ””
महारानी धारिणी देवी ने अपनी सेज मे सोते हृ एक वार
पिछली रात में “सिंह” को स्वप्न मे देखा शौर देखत दी उठ वटो ।
स्वप्न शुभ था, इसलिए ऐसे स्वप्न से उसे अनुमान हो गया कि
ध्वश्य कोई सिंह के समान तेजस्वी जीव मेरी कुच्ति से पुत्र-रूप में
उत्पन्न होगा 1 इससे उसे काफी प्रसन्नता हो रही थी ।
श्राज यदि कोई खी स्वप्न मे सिंह देख ले ता उसे प्रसन्नता
के स्थान पर घवराहट दोने की ही रथिक सम्भावना हं । सत्संग
के भाव से होने वाले चअन्नान का यह परिणाम दे । जो, ख्यां
पदी-लिखी हं, सन्ता रौर महासतियों की जीवनियां अथवा अन्य
धाभिक-मारित्य का नित्य वाचन करती रहती दे. चातुर्माममे या
प्न्य काल मे. श्पने नगरमे या श्चन्यत्र पधारे ए सरन्तो या
साध्चियों के प्रवचनो को ध्यान से सुनती हैं वें जानती हैं कि शुभ-
स्उप्त् दन ह 2 स्प्र इसीलिए “सिरः 9 जैसे किमी स्व्प्त को द
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