मल्लि जिन | Malli Jin

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कल्याण ऋषी - Kalyan Rishi

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शान्त प्रकाश - Shant Prakash

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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?-युक्टयाज महाबल श्री “लाया धम्मकहा', सूत्र के आठवें अध्ययन का वणन करते हुए श्याचार्य सुधर्मा-स्वामी अपने सुशिष्य जम्यू स्वामी को वता रहे हैं कि वीतशोका राजधानी के सुशासक महाराज वल, धारिणी देवी प्रमुख श्रपने विशाल अन्न पुर के साथ सानन्द रहा करते थे । तए णं सा धारिणी देधी अन्न कयाई सीहं सुमिणे पासित्ता पडिचुद्धा ० ˆ“ ”” महारानी धारिणी देवी ने अपनी सेज मे सोते हृ एक वार पिछली रात में “सिंह” को स्वप्न मे देखा शौर देखत दी उठ वटो । स्वप्न शुभ था, इसलिए ऐसे स्वप्न से उसे अनुमान हो गया कि ध्वश्य कोई सिंह के समान तेजस्वी जीव मेरी कुच्ति से पुत्र-रूप में उत्पन्न होगा 1 इससे उसे काफी प्रसन्नता हो रही थी । श्राज यदि कोई खी स्वप्न मे सिंह देख ले ता उसे प्रसन्नता के स्थान पर घवराहट दोने की ही रथिक सम्भावना हं । सत्संग के भाव से होने वाले चअन्नान का यह परिणाम दे । जो, ख्यां पदी-लिखी हं, सन्ता रौर महासतियों की जीवनियां अथवा अन्य धाभिक-मारित्य का नित्य वाचन करती रहती दे. चातुर्माममे या प्न्य काल मे. श्पने नगरमे या श्चन्यत्र पधारे ए सरन्तो या साध्चियों के प्रवचनो को ध्यान से सुनती हैं वें जानती हैं कि शुभ- स्उप्त्‌ दन ह 2 स्प्र इसीलिए “सिरः 9 जैसे किमी स्व्प्त को द




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