नन्ददास | Nandadas

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Nandadas by रामरतन भटनागर - Ramratan Bhatnagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जीवनी ६ (१३. नंददास मधुरमक्ति से उपःएना करनेवलति वैष्यतवे टै) पिकः का श्रयं रठशात्रि में मिएुण, लौकिक शज्ञार में लिप पुष्प और मधुरमाव का उपासक भक्क--तीनों दो सकते हैं। फदाचित्‌ नामादास्च ने मघुरमक्ति या ' राघाझम्ण के प्रति शन्नाशत्मक भक्ति दोने के कारण दी उन्हें “रतिक लिखा है । ( २.) उन्दोंने अ्यनरचमा को दे। रचनाएँ दो प्रकार की हैं--- लीलापद घर खरीति प्रम्थ | नंददात के पदों से दम परिचित ही हैं परन्ठ पसरीति” पे. श्द्वार-शाल-दम्बन्धी प्रन्थ म्रतव्य नही हैं | इस मशर के अस्थों के उदादरण नंददास के 'विरदमज्ञरी' श्रौर “रूपमतारी' हो सकते ई । . नंद्दाव के काव्य की विशेषता मी बतला दी गई है) साद्‌, सरस उक्ति, मक्ति-रस-पूर्ण गीति -माधुर्य । (३) बरं नपादा क अन्य के प्रययन तक बहुत मणिद्ध दो गये थे | ही (४) ये सापपुर भाप के निवासी थे | (९ ) पे शुक्ल थे--श्रस्छे वंश के, या सुकुल जाति के ब्राझणु ।< (६) चंद्रदाह उनके छोटे भाई ये) यह रपष्ट दे जि रच सन्ददास का यदइ उल्लेख नाभादास ने किया था, हब थे भक्त के रूप. में ग्रत्तिद्ध दो गये थे, रचना भी कर चुके थे भरि उषी माता योद रदौ शे, परन्तु रदते रामपुर में ही थे । इससे यहां दिदूलनाय ्रादि का उल्लेख मे दोकर उमके नाते उनके छोटे भाई क उल्ल श्राया ३५ न + की छं १७६६ फ भक्म्यल की रीका ( मक्ति-रष. “7 के विप्रय में विशेष कुदं नदी लिला गया 1 कां श्राविभवि नदौ दुश्रा था, नहीं हे । सेवादास ने संवत्‌ १८४६४ में प्रियादास 1 इससे धान पढ़ता है कि तुली ४ 0




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