जैसा तुम चाहो | Jaisa Tum Chaho
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
152
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पहुला श्रंक १५
श्रोलिवर : चार्सं ! तुम्हारे स्नेह का यह उपकार में स्वीकार करता हूँ ।
ग्रौर समय इसका फल भी दिलायेगा । मँ अपने भाई का इरादा
समभता हें मरौर मैने तो जहाँ तक वन सका उसे इस रास्ते से हटाने
की भी कोदिड की, तरकीवें थी कीं । लेकिन वह तो बड़ा पक्का है ।
चाल्सं ! वह फ़रंस का सवसे हठी युवक है । उसका हृदय बड़ा ही
महत्वाकांक्षी है ग्रौर हर ्रादमी की उन्तति श्रौर गुणों को देख कर
वह मन ही मन जलता है । क्या बता तुम्हें ? वह तो छिंपे-छिपे
मेरे विरुद्ध भी षड़यंत्र रचता रहता है। में तो खास भाई हूँ ।
उसके विपय में जंसे तुम टक समको वैसा करो । उसकी गदेन
तोड़ो या उंगली, मेरी वला से । लेकिन एक बात याद रखो ।
्रगर वह् कर्री चोट खाये विना निकल गया श्रौर पराजित भी
होनें का श्रपमानपामया तो समभ लेना वह छोड़ेगा नहीं ।
देगा, किसी चालवाजी से तुम्हें घेरेगा, यहाँ तक कि किसी
न किसी तरह से तुम्हारी जान लिये बिना न छोड़ेगा । यह कहते
हुए मेरा हृदय टूक-टूक होता है कि आज उसके वरावर का
वदमारा शर उसका-सा तन्दुरुस्त गुण्डा कोई जीवित ही नहीं है ।
इसमें कोई दाक नहीं कि वह मेरा भाई है, लेकिन-श्रगर उसका
वास्तविक रूप में तुम्हारे सामने प्रस्तूत करूं तो मुभे शर्म से रोना
पड़ेगा श्र तुम श्राद्चय्यं से चकित रह् जाग्रोगे ।
` चात्वं : तव तो यह बहुत ही चच्छा हुख्रा कि मँ भ्रापके पास सीधा
श्रा गया । श्रगर कल श्रॉरलेन्डो मुभसे कुइती लड़ने आ्राता है तो में
उसे भ्रच्छी सजा दूंगा । ्रगर वहं ग्रखाड़े से जिदा निकल गया तो
में फिर लड़ना ही छोड़ दूंगा ! भगवान श्रापका भला करें ।
श्रोलिवर : चिदा ! भाई चाल्से विदा !
[ चाल्सं का प्रस्यान ]
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