जैसा तुम चाहो | Jaisa Tum Chaho

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Jaisa Tum Chaho by रांगेय राघव - Rangaiya Raghav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहुला श्रंक १५ श्रोलिवर : चार्सं ! तुम्हारे स्नेह का यह उपकार में स्वीकार करता हूँ । ग्रौर समय इसका फल भी दिलायेगा । मँ अपने भाई का इरादा समभता हें मरौर मैने तो जहाँ तक वन सका उसे इस रास्ते से हटाने की भी कोदिड की, तरकीवें थी कीं । लेकिन वह तो बड़ा पक्का है । चाल्सं ! वह फ़रंस का सवसे हठी युवक है । उसका हृदय बड़ा ही महत्वाकांक्षी है ग्रौर हर ्रादमी की उन्तति श्रौर गुणों को देख कर वह मन ही मन जलता है । क्या बता तुम्हें ? वह तो छिंपे-छिपे मेरे विरुद्ध भी षड़यंत्र रचता रहता है। में तो खास भाई हूँ । उसके विपय में जंसे तुम टक समको वैसा करो । उसकी गदेन तोड़ो या उंगली, मेरी वला से । लेकिन एक बात याद रखो । ्रगर वह्‌ कर्री चोट खाये विना निकल गया श्रौर पराजित भी होनें का श्रपमानपामया तो समभ लेना वह छोड़ेगा नहीं । देगा, किसी चालवाजी से तुम्हें घेरेगा, यहाँ तक कि किसी न किसी तरह से तुम्हारी जान लिये बिना न छोड़ेगा । यह कहते हुए मेरा हृदय टूक-टूक होता है कि आज उसके वरावर का वदमारा शर उसका-सा तन्दुरुस्त गुण्डा कोई जीवित ही नहीं है । इसमें कोई दाक नहीं कि वह मेरा भाई है, लेकिन-श्रगर उसका वास्तविक रूप में तुम्हारे सामने प्रस्तूत करूं तो मुभे शर्म से रोना पड़ेगा श्र तुम श्राद्चय्यं से चकित रह्‌ जाग्रोगे । ` चात्वं : तव तो यह बहुत ही चच्छा हुख्रा कि मँ भ्रापके पास सीधा श्रा गया । श्रगर कल श्रॉरलेन्डो मुभसे कुइती लड़ने आ्राता है तो में उसे भ्रच्छी सजा दूंगा । ्रगर वहं ग्रखाड़े से जिदा निकल गया तो में फिर लड़ना ही छोड़ दूंगा ! भगवान श्रापका भला करें । श्रोलिवर : चिदा ! भाई चाल्से विदा ! [ चाल्सं का प्रस्यान ]




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