माटीमटाल | Matimataal
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
359
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)औरतों ने एक-दूसरे की ओर देखा । कोई नही निकली 1
इसके बाद देखा, अकेली आगे बढ़ रही है छवि । साँस रोके सब उस मूर्ति की
मीर देखते रहे । सबके चेहरे पर भय की छाया । मानो वह किसी जीवित गोखर
नाम कीओर वड रही हौ । अकेली, निविकार ! वह पन्द्रह-वीम डग का रास्ता
कितना लम्बा दिख रहा है । मानो कोई स्वप्न देख रही हौ । स्वप्न में कदम-कदम
'बढाये चल रही हो, रुक-रुककर। पास जाकर धीमे से छवि ने कहा, “यहाँ ऐसे
क्यों वैठी हो भाभी ! कसा रूप बना लिया 1!”
छवि ने उसका आं चल उठाकर देहं ढाँप दी । माथे के वालों को मुदरी मे भर-
भरकर पीठ की ओर कर दिया । कहा, “घर में चलो, ये माथे के वालो को ठीक
करना है ।” धीरे-मे हाथ पकडकर ऊपर उठाया ! केला की पत्नी पत्थर की तरह
बैठी थी । छवि ने हाथ पकड़ा तो धीमे-से उठकर खडी हुई। फिर हलचल मची,
अबकी आशका भर गयी, पता नही कया करेगी ' कुछ नहीं किया, मानो वहू खडी-
खडी कोई स्वप्न देख रही हो । छवि उसकी वाँहो को हथेली का सहारा देकर उसे
घर के अन्दर ले गयी । बोली, “कोई आना तो जरा, विस्तर खाट पर डाल देना
सो--”
सिन्धु चौधरी ने कहा, “कोई औरत जाये उसके पास। वहू का जतन तो
करना होगा, खाली देखने से क्या होगा ?
अवक और पाँच-सात औरतें गयी । विछावन फीलाया गया, केला की पत्नी
कौ खाट पर लिटाया गया, पखा झला गया 1 वह चुपचाप पडी रही ।
“अब सो जा ।” छवि की माँ ने कहा ।
दरवाजे से सिन्धु चौधरी वोले, “हाँ, पहले नीद दरकार है । ठाकुरजी ठीक
कर देने-”
“आँख मीच लो भाभी,” छवि ने स्निग्ध स्वर में कहा । उसके चेहरे की ओर
ताकती रही केला की पत्नी, फिर उसने अपनी आँखें मीच ली । सच भर सपन के
वीच झूल रही थी उसकी चेतना । उसका चुपचाप पड़े रहने को मन कर रहा था।
एक-एक कर मव चली आयौ 1 दरवाज़े पर थी बुढिया शिखरा को माँ । उसके
साय सपर्न। की माँ थी । वह केला की माँ की साधिन है, लम्बी हडीली भरत ।
खतं अमीत करो रुकी ने बाहरकाली कोठरी हे एस, “रात मे कौन सा रहेगण, घर
गकी व्यवस्था कंसे-क्या होगी ?” वर्ग रह ।
केला की माँ को संभालने की व्यवस्था हुई । गाँव के लोग वाहर बैठ उपाय
के बारे में सोचने लगे, मानो यह गाँव-भर की समस्या हो ।
सिन्धु चौधरी, छवि और उसकी माँ लौट आये ।
खाट पर लेटी-लेटी केला की स्त्री आधे चेतनावस्था .में.सोचने की चेप्टा कर
रही थी। सिर में जैसे पहिया धूम रहा है। विश्वास ही नहीं होता कि इस तरह
_माडीमुडाल : ४ भाग दो / 31
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