सूरदास | Surdas

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Surdas by दामोदरदास मूँदड़ा - Damodardas Mantra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मी कह है: श्ट ब्रह्मास्मि को मतर बोलना उक्त समयका एकं फैशन बन गयां था । इस प्रकार स्पष्ट है कि मध्ययुग के झारम्म में धामिक क्षेत्र मे सुधारवाद को मनोवृत्ति लक्षित हो रही थी । इस समय भारत में मुस्लिम धर्म भर सरइति का प्रवेश हुमा 1 मुसलमान विजेता थे, धन सोलुप ये भौर धर्मान्ध थे । श्रत: इन्होंने भारतीय घ्म एवं समाज को हेय दृष्टि से देखा । सुछ मुसलमान ऐसे भी ये जिन विचारशील, उदारमना भौर साथु व्यक्ति कहां जा सकता है। ये मुसलमान सूफी कहलाते थे । इन्होंने भारतीय श्रद्वेतवाद भौर मुस्लिम सर्वेशवरवाद में कुछ सामंजस्य बिठाने का प्र पतन किया । इससे कुछ हिन्दू इस्लाम की प्रोर वर्ष भाकर्पित हुए होंगे, किन्तु इनकी संख्या कुछ अधिक नहीं हो सकती थी} हौ, इसका एक सुन्दर परिणाम श्रवर्य हुपा । दो विरोधी जातिपों ने एक दूसरे के धर्मों को समभकने का प्रयास किया । कवीर जैसे सनतों ने इन दोनों धर्मों मे एकता बिठाने का स्तुत्य प्रयास किया, किस्तु कबीर स्वय श्रधिदित थे भझौर किसी भमिजात वं के नही थे, प्रतः उनका प्रभाव थिक्षित एवं उच्च वर्गों पर ने पड़ सका । कबीर से सन्तों का कुछ भषिक प्रभाव न पड़ने के मुछ प्रौर भी कारण थे । प्रथम दो यह कि निराकार ब्रह्म कीकल्मनादी प्रत्यन्त दुरु थी । दूसरे, उसकी प्राप्ति के साधन हठयोग, संहजसंमाधि, 'रहस्थात्मक 'मक्ति झादि सुगम साधन मही ये । तीसरे, इसमें व्यक्तिगत साधना पर भाधारित विधानों के कारण भहुंवार, पासंड एवं भाडम्दर प्रवेश पा गये थे । इस प्रकार तत्कालीन जीवन उद्देश्यहीन बना हुमा था। शान भौर करें को मार्ग भत्यन्त दुर्लभ था । परस्पर विरोधी विचारों का संघर्ष निरन्तर जात था 3 चामिक दोव में चारों और रन्धकार मे एक भमर ज्योति दिखाकर जनता बा पाएं निदशन फिपा । देश की एक ऐतिहासिक धावइपडता इसके प्रचार द्वारा पूरी हुई । घामिक परिस्थतियाँ जिस समय उत्तर भारत बौद्ध घमं के रयं भे पूर्णतया स्था हभ षा, उन




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