राजस्थानी बात संग्रह | Rajasthani Bat Sangrah

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Rajasthani Bat Sangrah by हजारीप्रसाद द्विवेदी - Hajariprasad Dwivedi

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हजारीप्रसाद द्विवेदी (19 अगस्त 1907 - 19 मई 1979) हिन्दी निबन्धकार, आलोचक और उपन्यासकार थे। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म श्रावण शुक्ल एकादशी संवत् 1964 तदनुसार 19 अगस्त 1907 ई० को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के 'आरत दुबे का छपरा', ओझवलिया नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री अनमोल द्विवेदी और माता का नाम श्रीमती ज्योतिष्मती था। इनका परिवार ज्योतिष विद्या के लिए प्रसिद्ध था। इनके पिता पं॰ अनमोल द्विवेदी संस्कृत के प्रकांड पंडित थे। द्विवेदी जी के बचपन का नाम वैद्यनाथ द्विवेदी था।

द्विवेदी जी की प्रारंभिक शिक्षा गाँव के स्कूल में ही हुई। उन्होंने 1920 में वसरियापुर के मिडिल स्कूल स

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मामव-भावनार्भो का सीधा भादाम प्रदान एक बहुत बड़ी मिशपता है जिससे मावायुमूतियों को भभिक विस्तार मिन्न सकता है ! बातों में नाटकीपता लाने के सिए कथोपकपनों का प्रयोग हुआ है। फई कपोपकयन यहुत छोट हैं तो कई यहुत दड़े । गद्य घ्ौर पर दोनों के माध्यम से इसका प्रयोग हुआ है। पद्च में प्राय बे कयोपकथन मिसेंगें जिनमें 'माव-पूर्णं निवेदन भ्रपमा भ्यग होगा । इनसे पार्जों की 'चारिजिक बिशेपतार्ों के 'तद्घाटन में तथा कथा-सूज की प्रगति मे सहयोग मिलता र्हा है तमा कमा मे रोक्ता सजीबता श्रौर माव प्रकाशन की भरद्सुत क्षमता था यई है । जहाँ तक कथा-सत्व का सम्बन्ध है इनमें मुस्य कभा के भ्रतिरिषत छोटो-बड़ी प्रय सष्ामक कषार्पो का मी प्रयोग मित्ता है । प्रासंगिक कथा में मी बई बार दूसरी कथा भरा जाती है भौर कई कथा्ों का क्रम तो एक दूसरी कथा में से निकलता हो चला भाता ह । रणामो से सम्बन्ध रखने वासी करर कथाम षस परह का ारतम्य मिसगा । एतिहासिक पूपा से सम्बष रलने वासी क कषा में छोटी वड़ी कथाएँ जिगका एक दूसरी से विक्वेप सम्बप महीँ है मिस कर मायक की 'बारिज्िक बिदोयता्ों पर प्रकाश डासती है । सकसित बातों में महाराजा पदमसिंहू की बात इसी तरह फी है । उपरोक्त झषेसीगत विवेचन में यह बात मी ध्यान देने की है कि कपानफ के कई स्पसों पर पद्य में कही हुई बात शोता्ों भभवा पाठकों की सुविधा के सिए फिर से गद्य में दोहराई घाती हैं पर बर्णम-सेसी की रोभकता के कारण पुनरावृत्ति दोप दिखाई नहीं पड़ठा । इन बातों की मापा पुरानी राजस्थानी है पर समय के दौरान में मापा बा रूप निरतर बदलता गया है इससिए सम्पादित बातों की भाषा का रूप भ्पिक प्राचीम महीं है । महाँ प्रयुक्त मापा का सबसे बड़ा गुण उसकी सहजता भौर सजोगता है 1 बर्णुनाहमक स्थ्सों पर इसनी सपक्त मापा का प्रयोग हुआ है कि सहज ही में वित्र उपस्थित हो जाता है। यार्तासापों में प्राय पार्जों के भ्रनुस्प ही माया का प्रयोग सिसता है । यहाँ सक कि कई बातों में ठो मुससमान पाजों के मुँह से उर्दू प्रथा फारसीमिधित माया प्रयुक्त हुई है। घेसा कि पहले कटा था चुका है इन बातों की मूल प्रकृति कहे जाने की है, परत मापा में भी उसके भगुस्प ही सयार्मकता रबानगी प्ौर सहुजठा है } माव श्रौर बस्तु-वर्णन दोमों ही में मापा की यह भभिष्पक्ति-झपता भ्पने पौचिरय के साथ इष्टिंगोचर होती




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