शक्ति , वर्तमान और भविष्य | Shakti Vartmaan Aur Bhavishya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21.5 MB
कुल पष्ठ :
206
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
फ्रैंक शेरवुड टेलर - Frank Sherwood Rowland
No Information available about फ्रैंक शेरवुड टेलर - Frank Sherwood Rowland
सत्य प्रकाश गोयल - Saty Prakash Goyal
No Information available about सत्य प्रकाश गोयल - Saty Prakash Goyal
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ऊर्जा के स्रोत कबंन-डाइ-आक्साइड के ८८ पौण्ड प्रकाश की ऊर्जा के लगभग ८४ अशव-दाक्ति घंटे अवदयोषित कर लेते हैं और आविसिजन गैस के ६४ पौण्ड और साथ-ही-साथ द्राक्ष- शक॑रा के ६० पौण्ड का उत्पादन करते हैं । इस द्राक्ष-दकंरा में सूर्य के प्रकाश की ऊर्जा संगृहीत रहती है । पौधा द्राक्ष-शकंरा को इक्षु-शकंरा स्टार्चें सेलूलोज तैल मोम प्रोटीन इत्यादि में परिवर्तित कर सकता है। परन्तु यह ऊर्जा कुछ बढ़ी या घटी हुई मात्रा में उत्पादित पदार्थ में बनी रहती है । जब द्राक्ष-दाकंरा या इससे उत्पादित पदार्थ आक्सीकरण द्वारा कार्बेन-डाइ-आक्साइड और जल में पुनः परि- वत्त होती है तो प्रकाश द्वारा सिलनेवाली यह ऊर्जा उष्मा या कार्य के रूप में या किसी और प्रकार से व्यक्त होती है । यही इंधन की कहानी है । पौधा इसका निर्माण करता है और इसे तोड़कर हम इसे इसकी पूर्व दशा में पहुंच। देते है और इससे निकलनेवाली ऊर्जा का उपयोग करते हैं। हम पौधे को खा सकते है जिससे द्राक्ष-शर्करा को हम अपने स्नायुओ में जला सकें और इसकी ऊर्जा को उष्मा और कार्य में परिवर्तित कर सकें जिस लकड़ी के रूप में पौधे ने द्राक्ष-शर्करा को परिवर्तित किया था हम उसे जला सकते हैं और उससे अपने कमरों को गर्म कर सकते हैं या एक इंजन चला सकते है । हम कोयला जला सकते है जो कि ६ करोड़ वर्ष पूर्व जीवित पौधों के रूप में था हम तैल जला सकते हैं जिसका निर्माण प्राचीन काल में अण्वीक्षणीय पौधों पर निर्वाह करनेवाले छोटे- छोटे समृद्री जन्तुओं द्वारा हुआ था--सिद्धान्त वही है यद्यपि प्रक्रम की विधि और अथं-व्यवस्था कदाचित् भिन्न हो सकती है । पूंजी या आय ? संसार का अधिक भाग हरे पौधों से आच्छादित है । थरू पर वे केवल वहीं नहीं देख पड़ते जहाँ जल की न्यूनता है या ताप बहुत ही कम है । इसी प्रकार समुद्री यह ऊर्जा की वह मात्रा दे जो वास्तविक रासायनिक परिवतन में व्यय होती है किन्तु जिस जिस खेत में पीधे उगाये जाते है उसपर विकरित होने वाली सीर ---ऊर्जा का. यह केवल द डेप से जी पक है। उस ऊर्जा का ९४ प्रतिशत से अधिक भाग परावर्तित या उष्मा में परिवर्तित हों जाता है भर पुनः विकरित होता है या नमी को वाष्प में परिवर्तित करने में व्यय होता हे । अतः कृषि द्वारा सौर-ऊर्जा को उपयोग में लाने का तरीका बहुत ही लिरुपयोगी है | 1. 0056 2. 801६ 8. ८९७६९... 4. 5086. 5. 6.
User Reviews
No Reviews | Add Yours...