तुलसी - ग्रंथावली भाग - 1 | Tulasi-granthavali Bhag - 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
35 MB
कुल पष्ठ :
579
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)र श्री राम चरित माक
सो० -जो सुमिरत सिधि होइ गननायक करिवर बदन ।
करौ अनुग्रह सोद बुद्धिरासि सुम युन सदम ॥
मू होई चाचाल पगु चढ़ गिरिवर गहन ।
छतु कृषौ से ` दयाल द्रव सकलं कलिमल दहन ॥
नीलं सरोरुह स्वाम तर्नं - श्रुत. -बारिज नयन |
करी सो मम उर घाम सद द्वीर सागर सयन ॥
कुद इष्टुः सम देह उमारमन करुनाच्नयन।
जाहि दीन पर नेह करौ कृपा मदन मयन ॥
व॑दौ गुर पद कज कृपािधु नर- रूप हरि)
महा मोह तम॒ पज जाञु बचन रबिकर निकर ॥
ददौ गुर पद प्टुम परागा । सुरुचि मुबास सरस अनुराग ॥
अभिन्न सूरिं मय चूरनु चा । समन सकल भव रुज परिवारू ॥
सुत समु तन विमल बिमूती । मंजुल मंगल. मोद, पून. ॥
जन मन मजु सकु मल हरनी } किए तिलक गुम गन. वत्त करनी ॥
श्री गुर पद नघ मनि गन जोदी | सुमिरत दिव्य ष्टि हिय होती ॥
दलन मोह तम सो सुप्रकासू । बडे भग उर अद, जासु #
उपरि बिमल विलोचन ही के । मिं दोष दुख मत्र रजनी $.
सू्हिं रामचरित मनि मानिक । गुपुत प्रगट जह जो जेहि खानक ॥
दोऽ-- जथा सुश्रजन शअंजि इग साधक क्षि छनन ।
कौतुक देखहिं पैल बन भूतल मूरि निधान ।॥ १॥
गुर यद रज् मृदु मंजुलर अजन नयन अमित्रं इग दोष विभजन ॥
तेहि करि विमले बिक त्रिलोचन । बरनों रामचरित मव मोचन ॥
बंदों प्रथम अहीर चरना | मोह जनित संसय सत्र इरना ॥
सुजन समाज सकल गुन , खानी । करों. प्रनाम सप्र सुकनी ५
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