तुलसी - ग्रंथावली भाग - 1 | Tulasi-granthavali Bhag - 1

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Tulasi-granthavali Bhag - 1  by माताप्रसाद गुप्त - Mataprasad Gupta

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about माताप्रसाद गुप्त - Mataprasad Gupta

Add Infomation AboutMataprasad Gupta

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
र श्री राम चरित माक सो० -जो सुमिरत सिधि होइ गननायक करिवर बदन । करौ अनुग्रह सोद बुद्धिरासि सुम युन सदम ॥ मू होई चाचाल पगु चढ़ गिरिवर गहन । छतु कृषौ से ` दयाल द्रव सकलं कलिमल दहन ॥ नीलं सरोरुह स्वाम तर्नं - श्रुत. -बारिज नयन | करी सो मम उर घाम सद द्वीर सागर सयन ॥ कुद इष्टुः सम देह उमारमन करुनाच्नयन। जाहि दीन पर नेह करौ कृपा मदन मयन ॥ व॑दौ गुर पद कज कृपािधु नर- रूप हरि) महा मोह तम॒ पज जाञु बचन रबिकर निकर ॥ ददौ गुर पद प्टुम परागा । सुरुचि मुबास सरस अनुराग ॥ अभिन्न सूरिं मय चूरनु चा । समन सकल भव रुज परिवारू ॥ सुत समु तन विमल बिमूती । मंजुल मंगल. मोद, पून. ॥ जन मन मजु सकु मल हरनी } किए तिलक गुम गन. वत्त करनी ॥ श्री गुर पद नघ मनि गन जोदी | सुमिरत दिव्य ष्टि हिय होती ॥ दलन मोह तम सो सुप्रकासू । बडे भग उर अद, जासु # उपरि बिमल विलोचन ही के । मिं दोष दुख मत्र रजनी $. सू्हिं रामचरित मनि मानिक । गुपुत प्रगट जह जो जेहि खानक ॥ दोऽ-- जथा सुश्रजन शअंजि इग साधक क्षि छनन । कौतुक देखहिं पैल बन भूतल मूरि निधान ।॥ १॥ गुर यद रज्‌ मृदु मंजुलर अजन नयन अमित्रं इग दोष विभजन ॥ तेहि करि विमले बिक त्रिलोचन । बरनों रामचरित मव मोचन ॥ बंदों प्रथम अहीर चरना | मोह जनित संसय सत्र इरना ॥ सुजन समाज सकल गुन , खानी । करों. प्रनाम सप्र सुकनी ५




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now