समयसार - वैभव | Samayasaar - Vaibhav
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
205
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)डे
4. आसव अधिकार । 5. संवर मधिकार । 6. निराधिकार । 7. अष अधिकार १ 8, भोका
अधिकार । 9. सबं विशुद्धि अधिकार । ( 10. स्याटाद अधिकार ) इनका संक्षिप्त
परिचय यहां विया जाता है ।
जीवाजोवाधिकार
इसमे जोव के एकत्व की अर्यात् स्वसमय' को कथा है, तथा बंध की कथा अर्थात्
पर समयः को भी कथा है । स्वसमय कथा आनन्ददापिनो है ओर परसमय कौ कथा
विसंवादिनौ है । जीव तो लायक स्वभावौ स्वयं अनन्त चैतन्य का पुंज है । स्वरूप से त्रिकाल
बुद्ध है । ज्ञानी के सम्यग्दर्दन ज्ञान चारित्र है, ऐसा कथन (भेद रूप कथन) व्यवहार
नय से किया जाता है । परमार्थनय ( निश्जयनय ) से देखा जाय. तो
आत्मा अखप्ड है, शान दर्शन चारित्र से अभिन्न है, उसमें त्रित्व-तसीनपना नहीं है । भेद
कथन हो व्यवहार कथन है तथा अभेद स्वरूप वस्तु का अखंड एकाकार जैसा कि चह
है-बैसा वर्णन करना निश्चय परक कथन है । वस्तु का स्वरूप यदि जानना है तो उसे भेद २
कर ही जाना जा सकेगा । इस अपेक्षा से व्यवहार नय उपयोगी है, उसके बिना लिदचयात्मक
अखंड, एक घस्तु का स्वरूप नहं जाना जा सकता, इसीलिए व्यवहार नय भी प्रयोजमीय
है, ऐसा कहा गया है । इन दोनों को भेदनय ओर अभेदनय-एसे दो नास देना हो ज़्यादा
सुसंगत होमा ।
सेद प्रतिपादकता भी दूष्टि से जहाँ वस्तुगत भेद प्रतिपादित हो वहां बह नय वस्तु के
निदचयात्मक स्वरूप का ही निर्देश करता है, अतएव उसे “स्वाश्रिती निश्चय:” इस
निइचय के लक्षणानुसार निश्वयनम में हो शामिल कर सकते हैं । तथा “'पराशितो
ब्यवहार:” इस व्यवहार के लक्षण के अनुसार परद्रव्य सापेक्ष आत्मा के दर्णन को हो
ब्यवहार नय कगे । संसारी आत्मा को, उसकी उस अशुद्धावस्था मे भो “आत्मा” कहना,
यह पराश्रित व्यवहारनय का कथन है । इस नय का भौ प्रयोजन पर के परत्व का
प्रतिषादन ही है, अत: शुद्ध पदार्थ के बोध कराने के लिए इसका भौ प्रयोजन है ।
अश्ुद्धात्मा कै प्रतिपादकं व्यवहार नयं को मभूतायं (अशुद्धा्थ) का प्रतिथादक
होने से अभूतां कहा है, ओर शुद्धात्मा (भूताथं ) के प्रतिपादकनयं निहचथनय को भूताथे
कहा गया है । संसारो जीव की वर्तमान रागादि रूप अवस्था आत्मा का दुद्ध स्वरूप नहीं
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