प्रकृति और हिंदी काव्य | Prkrti Our Hindi Kavya

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Prkrti Our Hindi Kavya by रघुवंश - Raghuvansh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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व (४ ) गया है । दूसरे शाग में निश्चित कालों के काव्य के च्रष्ययनको प्रस्तुत करके सिद्धान्तो को एकच्चित किया गया है; यह विगमन प्रणाली है । श्रन्य जिन्‌ शाख्रों के सिद्धान्तं कां च्राश्रय लिया गया है बचद्द साघारण सहज वोध के आधार पर ही हो सका है।यह सहज वोधघ का श्राधार प्रस्तुत विपय के श्रनुरूप है; रागे इस पर प्रथम भाग के प्रथम प्रकरण में विचार किया गया है । ६ ४-दमारे खोज-काययं की सीमा में दिन्दी साहित्य के भक्ति तथा रीति काल स्वीकृत हैं । परन्ठु प्रस्तुत विपय की दृष्टि से इन दोनों कालों को श्रलग मानकर चलना उचित नहीं दोगा, रेखा काय्य के आगे बढ़ने पर समभक्ा गया ह । इसलिए इन दोनों को हमने सवत्र हिन्द साहित्य का मध्ययुग साना है | संक्षेप दे विचार से श्नेक स्थलों पर केवल मध्ययुग कदा गया हे} भारतीय मध्ययुग को श्रलग करने के लिए; उसके लिए. स्वदा पभारतीय मत्ययुग का प्रयोग किया गया है । भक्ति-युग के प्रारम्भ से रीति-सतवन्धी प्रइसियोँ सिलती रही हैं श्र भक्ति-काव्य की परम्परा चोद तक बरावर चलती रदी हैं। यह वहुत कुछ अवसर श्र संयोग भी दो सकता है कि युग के .एक भाग. में एक प्रकार के महान कवि श्रधिक हुए } यद्यपि राजनीतिक वातावरण का प्रभाव रीति-काल की प्रेरणा के रूप में श्रवश्य स्वीकार किया जायगा । परन्ठु इन कारों से ्रधिक महखपूणं वात इन कालों को मध्ययुग के ल्प मं माननेके लिए. यह है कि अधिकांश मक्त-कवि साहित्यिक छादर्शों का पालन करते हैं श्र श्धिकांश रीतिकालीन कवि साधक ने होकर भी भक्त युग की समस्या हूँ।इस के श्रतिरिकत जैसा कष्या गया-है विपय के विचार से इन कालों को एक नाम से कदना अधिक उपयोगी रहा है । ऐसा करने से एक दी प्रकार की वात को दोवारा कहने से बचा जा सका है और साथ ही कार्य्य में सामजस्य स्थापित किया गया है | प्रकृति के विचार से रीहि-काल भक्ति-काल के समक्ष बहुत संक्षिप्त दो जाता ।




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