अफलातुनकी सामाजिक व्यवस्था | Aflatuniki Samajik Vyavstha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
228
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about मुकुन्दोलाल श्रीवास्तव - Mukundilal Srivastava
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अफलातूनकी जीवनी । ५
नामक ग्रन्थन उसने प्रथम उदेशकी सिद्धिका प्रयत्न किया
है शरोर प्लोज्ञ' नामक ग्रन्थमे दूसरे उदेश्की सिद्धिका । परन्तु
इससे कोई यदह न समै कि उसके ये समस्त विचार केवल
'वयाली दुनियो ` की वाते धी श्रौर उन विचारोके भ्रचारसे
प्रत्यक्त कुछ भी कार्य न हो सका । चास्तवमें उसका विद्यापीठ
राजकीय कार्योकी शिक्षाका केन्द्र था और उसके शिप्योमेंसे
श्ननेकौने राज्य-सं चालकका शौर व्यवस्यापकका काम किया !
चिद्यापीठसे निकल कर उसके शिष्योने भिन्न भिन्न राज्योंमें
सुव्यवस्था स्थापित करनेका प्रयल किया ।
श्रफलातूनके वाद् जेनोकेटीज नामक पुरूष उसके चिद्या-
पीठका संचालक दुध्रा इस व्यक्तिने प्रसिद्ध सिकन्द्रके
कहनेपर उसे राजाके कार्योकी शिक्षा दी श्रौर झाथेन्सके
राजकीय कार्यों में प्रत्यक्ष भाग भी लिया । श्रीसके पूर्व श्र
पश्चिम, दोना श्लोर, इस विद्यापीठका यथेप्र भरभाव पड़ा । पक
वातमे तो इसका प्रभाव खूब गहरा श्र स्थायी रहा--यूनानी
काननूके विकासमें इस विद्यापीठका अच्छा हाथ रहा । खयं
झाफलादूनने पने तत्वोके श्रुसार मीसके कानूनका प्रणयन
शोर परिवतेन करनेका प्रयल किया था । ऐसा जान पड़ता
हे कि तत्कालीन ग्रीखपर 'रिपब्लिक' की अपेक्षा 'लॉज़' नामक
भ्रेंथका झाधिक प्रभाव पड़ा ।
अफलातूनके काय इतनेमें ही समाप्त नही होते । साठसे
सत्तर च्पेकी 'ावस्थातक सिसलीमें उसने श्रपने तत्वौको
प्रत्यक्ष व्यवहारमें लानेका प्रयल किया था । तत्कालीन राज-
कीय परिखितिके सम्बन्धमे मनन करनेसे उसकी यह ढ़
'घारणा होगयी थी कि राज्योकी शासनन्यवस्थाश्यौ{का जव-
पे ए0ए5घ1ए 901 018 प58010115
User Reviews
No Reviews | Add Yours...