एक सामाजिक अनीता की कहानी | Ek Samazik Anita Ki Kahani

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Ek Samazik Anita Ki Kahani by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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एक दिन मोसम मैं देनी थी हवा ही हुई चल रही मी कभी लगता जैंसे व सर _ -लर्म्द रही हो बह निढाल होकर गा बासपाई पर लेटी हुई थी 1 यह गहरी सर्ध्या था। उसका पति भी मर से लौदा नहीं था ३ बाहर 1 था पीर उसके नौकर नें झन्दर प्रावर कहां था साहिव डर प्य्रौर तूने कई पं नहीं दिया द्ममी बल से जीटे रहीं | दहद साहिय को नहीं पूछते रन उन्होने च्रपना नाम बताया था। पर भूल गया प्जाधो । फिर नाम पर ना पर नौकर ने लीटकर कहा या मर इस दाव्द ने उसके सम्पूर्ण सांस नो भपने मदर मल और उसे लगा था जींद पी एक गोली के ्सपात दर बहुतनसी गोलियां था से थीं घोर प्र उसके होग गुम होते जा रहे थे होगा दा झावद बस से न पाल बहू दूसरी भनीता नी से घ्रधिफ चैतन्य दी। व्दू च्ते के सामने हुई थी उर चोडागा दालों सवारा था रे फिर याहर के बडे कमरे मे भा श्द मं पउच् दिन गलती से देन मेरे साय गया थाना कहां चा-पोर हा झ्ूं पषड़ां इन उसके भागे पर दिया था उसके मन मैं ककतनी हो हें भ्राई थीं जरा पैन वितना हजो ग्रह गलती कर सफठ झापका बया विचार दै. शरना सरल बात दोतो है चुन झौर स्पी में होठा दे दर फिर इसे दुनिया में कोई गलती वर पर इस सती गरने का टोता कई यार




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