भाषा - शिक्षण | Bhasha - Shiskshan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
82
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)10 == भाषा शिक्षण कुछ नये विचार-बिन्दु
की भाँति भ्रागे बढकर उसका मार्ग-दशन करता है । इस
प्रकार बालक की रक्षा भी होती है ।
कुछ समय पहले बालकों को पारितोषक शझादि देने की
भी प्रथा प्रचलित थी, किन्तु इस प्रथा से कुछ बालको के
हृद्य मे हीनता की भावना ने जन्म लेना, रौर फलस्वरूप
उनके हृदय मे ईर्ष्या का भाव जागृत होना झारभ हो गया-
क्योकि प्रत्येक बालक गी क्षमताएं अलग-प्रलग होती हैँ
किसी मे चित्रकार के गुण पाए जाते है, तो यह श्रावइ्यक
नही कि वह प्रस्य विषयों मे भी पारगत हो । श्रौर अन्त मे,
ग्राजकी रिक्षा की एक विशेष महत्ता का उल्लेख करना
ग्रावद्यक हौ जाता है--वह यह कि भ्राज पाठ्यक्रम एव
पुस्तकों पर कम, श्रौर बालकों की क्रियाश्रो पर अधिक महत्त्व
दिया जाने' लगा है ।
इसका प्रमाण हमे मोटेसरी पद्धति, बालोद्यान पद्धति,
डाल्टन पद्धति, श्रौर प्रोजेक्ट अथवा बेसिक पद्धति पर दृष्टि-
पात करने से शीघ्र ही मिल जाएगा । इन पद्धतियो में मोटे-
सरी और बालोद्यान पद्धति छोटी झायु के बच्चो के लिए
लाभदायक है, भ्रौर डाल्टन व प्रोजेक्ट पद्धति माध्यमिक
केक्षाग्रो के लिए उपयोगी है । उच्च कक्षाश्रो मे भी इनका
प्रयोग किया जा सकता है ।
मोटेसरो पद्धति भाषा-सिक्षण के लिए जो सुभाव
डा? मोटेसरी ने दिये है, वे शिक्षण पद्धति को उनकी एक भ्रमूल्य
देन है । उनका मथ है कि बालक को पहले लिखना, श्र तब
पठना सिखाया जाना चाहिए क्योकि पढने से लिखना सरल
होता है, श्रौर शिक्षण का एक महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त यह भी है
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