दक्षिण भारतमें जैनधर्म | Dakshin Bharat Mein Jaindharm
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
224
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about कैलाशचन्द्र सिद्धान्ताचार्य - Kelashchandra Siddhantacharya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)था उसमें उन्होंने लिखा था कि तोलकाप्पिय जैनवर्मातुयायों था औौर इस सम्बन्ध
में उनकी मुख्य युक्ति यह थी कि तोलकाप्पियके समकालीन पनपारनारने
तोलकोप्पियको महान् ओर प्रस्पात 'पड़िमई' लिखा है । पशिमइ प्राकृत पडिमा
दान्दसे बनाया गया है । पड़िमा ( प्रतिमा ) एक जैन दाव्द है जो जेनाचारके
नियमोका सुचक है । श्रापिल्लेने तोलकाप्पियमुके सुत्रोका उद्धरण देकर लिखा हैं
कि मरवियल विभागमें घास और वृक्षके समान जीवोको एकेन्द्रिय, घोघेके समान
जीवोंको दोइन्द्रिय, चींटीके समान जीवोको तेन्द्रिय, केकडेके समान जीवोको
चौइन्द्रिय बौर बड प्राणियोके समान जीवोको पचेन्द्रिय त्तथा मनुष्यके समान
जीवोको छह इन्द्रिय कहा है । यह जेनसिद्धान्तका ही रूप हैं । इन्द्रियोके आधार
पर किया गया जीवोका यह विभाग अन्य दर्शनोमें नहीं पाया जाता । भत
अत्यन्त पुरातन यह् तमिल व्याकरण प्रथ, जो वादके विद्वानों द्वारा एक प्रामाणिक
ग्रन्थके रूपमे माना गया, एक जेन विद्वान्की कृति है ।
तमिल साहित्यमें दूसरा महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है सन्त तिरुवल्लवर रचित शरुरल' ।
इसके रच यिताके समय भर धघमंको लेकर अनेक मत हैं । उनमें से अधिकाश मत
काल्पनिक हैं । यह सर्व-विश्वुत है कि शिलप्पदिकारमुमें कुरलका उल्लेख हे ।
शिलप्पदिकारमके रचथिता इठगो अडिगलू दोंगोट्रवनूके भाई थे । और शेगोटवन्का
समय ईसाको दुमरौ शती माना जाता है । कुछ विद्वारनोका मत है कि कुरल
मणिमेखले भर शिलप्पदिकारमुसे कमसे कम एक शताब्दो पूर्व अर्थात् ईसाकी
प्रथम शताब्दी के प्रारम्भमें अवश्य लिखा गया है । यह एक आश्चर्यं जनक वात
है कि कुरलके रचयिताका, जो एक महान् व्यक्ति था, नाम ज्ञात नहीं है।
तमिलकी साहित्य परम्परा उसे वल्लुवरकी कृति मानती है । किन्तु यह विश्वास
करनेके किए कि उसका रचयिता जेन या, मनेक पुष्ट प्रमाण हैं। स्व० प्रो०*
शोषगिरि शास्प्रीने लिखा था कि वल्लृषर अर्हृन्तका अनुयायौो था ।
कुररमे (मलरमिस दइ येगिनान' मौर येनगुनथान'का उल्लेख रचयिताको
जेन प्रमाणित करनेके लिए पर्याप्त है । हिन्द्र विद्वान् इन उल्टेखोको विष्णुके
पक्षमें लगाते हँ । किन्तु जो जैन शास्त्रोंस परिचित है या जिसने जैन शास्त्रोिंका
थोडा-सा भी अध्ययन किया है वह श्री शेपगिरि शास्त्रीसे सहमत हुए बिना नहीं
रह सकता । 'मलरमिसइ येगिनान'का मर्थ होता है ~ जो कमलपर चलता था,
यह भगवान् भर्तृका बहू प्रसिद्ध मतिशय ह । जेनशास्त्रोके अनुमार जब तीर्थंकर
१ स्ट० सौा० ६० जे०, १० ३६ ।
२ दे, रेषगिरि शाल्लीका तमिल साद्ित्यपर निबन्ध, १० ४२ ।
३ स्ट० प्रा० इ० जै०, ¶० ४१।
८ दक्षिण भारतमे जैनघर्स
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