भिक्षु विचार दर्शन | Bhishu-vichar Darshan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
216
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
मुनि नथमल जी का जन्म राजस्थान के झुंझुनूं जिले के टमकोर ग्राम में 1920 में हुआ उन्होने 1930 में अपनी 10वर्ष की अल्प आयु में उस समय के तेरापंथ धर्मसंघ के अष्टमाचार्य कालुराम जी के कर कमलो से जैन भागवत दिक्षा ग्रहण की,उन्होने अणुव्रत,प्रेक्षाध्यान,जिवन विज्ञान आदि विषयों पर साहित्य का सर्जन किया।तेरापंथ घर्म संघ के नवमाचार्य आचार्य तुलसी के अंतरग सहयोगी के रुप में रहे एंव 1995 में उन्होने दशमाचार्य के रुप में सेवाएं दी,वे प्राकृत,संस्कृत आदि भाषाओं के पंडित के रुप में व उच्च कोटी के दार्शनिक के रुप में ख्याति अर्जित की।उनका स्वर्गवास 9 मई 2010 को राजस्थान के सरदारशहर कस्बे में हुआ।
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका ~= ख
१०--जीमनवारो मे गोचरी जाते है ।
९१--चेल-चेखी बनाने के लिये आवुर हो रहे हैं । इन्हें सम्प्रदाय चलाने से
सृतलब है, साघुपन से नहीं* |
१२--साधु्ों के षास जाते हुए श्रावकों को ज्यॉ-त्यों रोकने का यत्न करते
हैं। उनके कुटुम्ब में कलह का बीज लगा देते हैं* |
१२--आज बैराग्य घट रहा है; मेस्र बढ़ रहा रहा है । हाथी का भार गधों
पर लदा हुआ है । वे यक गए हैं और उन्होंने वह भार नीचे डाल
दिया है |
आचार-शिथिलता के विरुद्ध जेन-परम्परा में समय-समय पर क्रान्ति होती
ही है। आय सुदृस्ती भये महागिरि के सावधान करने पर तत्काल सम्हल
गए” । चेत्यवास को परम्परा के विरुद्ध सुविहित-मार्गी साधु बराबर
जमते रहे । हरिभद्रसूरि ने 'संबोध प्रकरणः की रचना कर चेत्यवासियों के
कर्तव्यो का विरोध किया । जिनवछमसूरि ने (संघपद्रक' की रचना की मौर
सुविषित-माग को आगे बढ़ाने का यत्न किया । जिनपतिसूरि ने संघपट्टक
पर ३ हजार इलोक-प्रमाण टीका लिखी, जिसमें चेत्पवास का स्वशूप विस्तार
से बताया । चेंत्यवास के विरुद्ध यह अभियान सतत चाद रहा ।
विक्रम की सोलहवीं दयती में लों काशाह ने मूरति पूजा के विरुद्ध एक विचार
२-साध्वयाचार चौयई दाल ? गा० २०-२१ :
जीमणवार मेँ बहरण जाए, श्रा साधां री नद रीत जी ।
वरज्यों आचारंग दृषत् कल्य में, उत्तराभेन नसीत नी ||
शआलस नहीं आरा में जातां, बले बेठी पांत बसेप जी।
सरस आहार ल्यावे भर पातर, त्यां लज्या छोडी ले मेष जी ॥।
२-साध्वाचार चौपई दाल ३ गा० ११:
चेला चेली करण रा लोभिया रे, एकत मत बाधणस काम है 1
विकलां नें मू'ड-मूड मेला करे रे, दिराए गृहत्थ ना रोकड़ दाम रे ॥
२-साघ्वाचार चौप्र् दाल ५ गा० ३३-३४ :
कद श्वे सुध साधां कनें, तो मतीयां नें कहे आम
थें बर्जी राखो घर रा मनुष्य नें, जावा मत दो तॉम ॥।
कहे दर्शण करवा दो मती, वले. सुणब! मत दो बांश ।
डराण्नें ल्यागो न्हां कमं, ए ऊुयुरं चरित पिछछंश ॥
ॐ-साव्वाजार चौय दाल ६ गा० २८:
वैराग घट्या नं मेष वधियो, हाध्यांसे भार गां लदियो।
थक गया बोक दियो रालो, एवा भेषधारी पांचमें कालो ॥
4-शृहत्कल्प शश्च उद्देशक १, निशौष श्वुणि उ० ८
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