योग - शास्त्र | Yog-shastra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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एक परिशोलन 9 मोक्ष के साथ संबंध कराने चाली क्रिया को साधना को ही योग कहते है । जन-श्रागम से सवबर दाब्द का प्रयोग हुम्रा है । यह जैनो का एक विद्षेष पारिभाषिक शब्द है । जैन विचारको के श्रतिरिक्त अन्य किसी भी भारतीय विचारक ने इस दाब्द का प्रयोग नहीं किया है । सवर झाब्द श्राध्यात्मिक साधना के अर्थ मे प्रयुक्त हुआ है । श्रा्च का निरोध करने का नाम सवर है ।. मर्हाष पतजलि ने योग-सूत्र मे चित्त-वृत्ति के निसोघ को योग कहा है । इस तरह सवर श्रौर योग--दोनो के भ्रर्थ से निरोघ शब्द का प्रयोग हुश्रा है । एक मे निरोध के विशेषण के रूप से का उल्लेख किया है श्रौर दूसरे मे चित्त-वृत्ति का ॥ जनागम मे मिथ्यात्व शभ्रविरत्ति प्रमाद कषाय श्र योग को श्राखव कहा है । इसमे भी मिथ्यात्व कषाय एवं योग को प्रमुख माना है। श्रविरति श्रौर प्रमाद--कषाय के ही विस्तार मात्र हैं । यहाँ यह समभ लेना चाहिए कि जनागम मे उल्लिखित श्रास्रव में जो योग शब्द श्राता है वह योग परंपरा सम्मत चित्त-वृत्ति के स्थान मे है। जैनागम में मन वचन श्रौर कायिक प्रवृत्ति को योग कहा है । इसमे मानसिक प्रवृत्ति तीनो का केन्द्र है । क्योकि कर्म का बन्घ वचन श्रौर काया की प्रवृत्ति से नही बल्कि परिणामों से होता है 15 इस तरह योग-सूत्र मे जिसे कहा है जैन परपरा मे उसे श्रासूव रूप योग कहा है । १. निरुद्धासवे संघरो उत्तराध्ययन २९ ११ ग्रासव-निरोघ संघर तत्त्वाथ॑ सुन्न € १ । २. पच आसवदारा पण्णता त॑ जहा--मिच्छत्तं सझविरई पमायो कसाया जोगा। । -समदायांग समदायप ४. दे. परिणासशे बस्ध ।




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