वीर सेनानी | Veer Senanee

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Veer Senanee by शैलकुमारी - Shailkumari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| ६ ताक मेँ रहने लगा । वह महाराज महर्सि को किसी भी प्रकार नीचा दिखाना चादता था । उसने सन मं पक्का विचार कर लिया किं दल से बल से केसे भी दो लालवा से विबाइ अवश्य क्रिया जाये श्रौर महायान सहारसिह को बुरी वरद अपमानित किया जाये | वह उनके मागं से काटे वोत्ते लगा ! महाराज मदार्सिह की अनुपस्थिति सें बह किस प्रकार लालवा को चोरी से ले गया इसका दाल गठ च्चघ्याय सें पाठक पढ़ चुके हैं। उसके लिये मद्दाराज मददारसिदद के राजभवन में प्रचेश करना कठिन वात नदी थी क्योंकि बह वहां पहले से दी आता जाता था आर प्रांय: लालवा की माता तेजवा से चापलूसी की वातें वनाया करता था । महाराज मदार्सिह ॐ सावधानं कर देने पर भी तेजचा चन्द्रसिद्द की चिकनी चुपड़ी चातों पर विश्वास कर बैठी चाहे फिर रन पछताना दी पड़ा । उन्हीं गी झद्रदर्शिता कारण चन्द्रसिंद लालवा को लेजाने में सफल दो सका न्यथा राजभवन से एक राजकुमारी का इस प्रकार चले जाना इंसी[खेल नहीं है और वद्द भी उस जमाने मेँ जव कि राजालोग सतकं रह कर पणं सुरक्ता का प्रबन्ध रखते थे। चन्दर्सिदह्‌ ने बह ऐसा जाल फैललाया किं सव को मृखं वनाकर पना उल्लू सीधा कर लिया | यदि सद्दाोराज मद्दार्विद्द द्ोते तो शायद चन्द्रसिह की दाल कभी न गलती क्योंकि वे उसके दघकढ़ों को खूच समभते थे ! उनकी उपस्थिति में वह्‌ तेजवा से कभी शके मं वाच नहीं सकता था और ल वह लालवासेष्टी वोलने का साहस कर पाता था । सहारा महासिं लालवा को प्राणो से भी अधिक चाहते ये । इनकी इच्छा थी कि उसका विवाइ किसी ऐसे योग्य राजपुत्र से करें जो वीर, धीर, रूपबान, गणवान ने के श्रति- रक्त स्वदेश प्रमी दो शरोर स्वाधीनता के लिये अपने प्राणों को




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