सामायिक - स्वरूप | Samayik - Swarup
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
151
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand). सामापधिक-स्वरूप
सामां छृणो, घममाम सावभोअषरिपदुय !
आर शुरेपुय वषड्, शति य मिचाह पठियाई ॥५॥
अयोत्--चो घड़ी सममाभपुषंक सामायिक करनेवाला भावक
बेवणतिकी परन्योपस सैसी वीर्पासुप्यका बस्प करता है। 1४1!
चस्प तपर्चर्या करनेवासेकी अपेक्षा समतापूर्णक सामायिक
करनेवासे ब्यक्तिको शास्मक्ारोंने भेप् बताया है । देखो-
विभ्यतवं सषमामो, अ न निनिरटर् मम्मकोदीर्हि |
त सममाषिभ वित्तो, खदेर कम्म खणद्धेण ॥६।
अर्थात--करोरों जन्म पर्थस्त शीत तप वपमेबाज्ञा भ्यदि जिन
कर्मों को नहीं खिपा सकता, हन कर्मोको समसाधपूर्णक सामा-
भिक करलेयाश्ता खीब प्रापे दमे सिप बेता दे ६ साभायिक
की पइ कष्ट मदिसा है । रौर मी षडर
जे के दि गया मोररुख, थे बि यम पच्छंति ने गमि्संति |
है सम्बे सामाइअ, पमाषिण मुलेयर्म्स । 54)
अयोल--जो कोई मोझ गया जाता है भर जायग)ः ध्
सव सामायिक्के मादाप्म्म से ही ।।ग। इसके शखावा पपौर मी
कडा र--
फं तिम्वेम वेषेण, फिंच अमेण किं घरितेण !
समयाएविण्पुक्वो न हु दमो षद पिन ह टद् ॥८॥
अर्यात् यैता कोद तीतर वप तपे, जप जपे, पा दम्ब
अरित्र पारख करे धरज्तु समवा ( सममव ) क चिना शिसौको
मोष हरं नदी इती मही मोर होगी मी नदी १५८
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