जैन प्रश्नोत्तर कुसुमावली | Jain Prashnottar Kusumavali

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Jain Prashnottar Kusumavali by नान चन्द्र जी - Naan Chandra Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( है४ ) उ०-अम्बूस्वामी के पश्चात उनकी गादी असृवस्पामी को मिली, ये महायीर स्वामी के ७४ चर्प बाद स्वर गये, उनऊे पट श्री सेमयस्वासी हुए थे महापीरस्वामी से ६८ वर्ष बाद स्प्गे गये। उनऊे पीछे यशोमद्र पाट पर विराजे, थे महापीरस्वामी के १४८ वर्ष बाद स्वगे गए। उनके दो शीष्य थे संभ[वावेजय और, भद्॒या हु, सभूतिविजय, महावीरस्वामी से १४६ बपे बाद और भद्रवाहु १७० चपै बाद स्पगे गए। ४४ |०-उन भद्गरपाहु स्तरामी को कितना ज्ञानथा १ उ०-चौद्िह पूर्व का ज्ञान था, उनके पथात कोड चौद्‌ह पूर्व के ज्ञान चाले साधु न हुए॥ ४४ अ०-भद्रबाहु के शिष्य कौन हुए, और कितने ज्ञानी थे १ उ०-स्ूली भद्रजी थे, और वे दूस पू्े के ज्ञानी थे, उन '.. के पथ्ात्‌ पूव का ज्ञान धीरे २ कप होता गया। ६४ ग्र०-जैन सन्न सिद्धान्त किसने लिखे १ उ० -देवीघंगरि चपाश्रम ने । ४७ प्र०-वे महापीर स्वामी के कितने पाठ बाद हुए १ उ०-सत्तावीस वें पाट पर बैठे । ४८ ग्र०- पुस्तकें किस ग्राम में लिसी १ उ० चह्ठभीपुर में ( बला में ) ल्‍ः ४६ प्र०-महपीर स्वामी से कितने व याद पुस्तकें लिखी बाई उ०-ह८० चष पश्मात्‌। ४० प्र०-सत्र किसने सेंगठित किये £ उ«-सुधमों स्वामी गणघर ने ॥




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