सामायिक - स्वरूप | Samayik - Swarup

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Samayik - Swarup by नान चन्द्र जी - Naan Chandra Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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. सामापधिक-स्वरूप सामां छृणो, घममाम सावभोअषरिपदुय ! आर शुरेपुय वषड्‌, शति य मिचाह पठियाई ॥५॥ अयोत्‌--चो घड़ी सममाभपुषंक सामायिक करनेवाला भावक बेवणतिकी परन्योपस सैसी वीर्पासुप्यका बस्प करता है। 1४1! चस्प तपर्चर्या करनेवासेकी अपेक्षा समतापूर्णक सामायिक करनेवासे ब्यक्तिको शास्मक्ारोंने भेप् बताया है । देखो- विभ्यतवं सषमामो, अ न निनिरटर्‌ मम्मकोदीर्हि | त सममाषिभ वित्तो, खदेर कम्म खणद्धेण ॥६। अर्थात--करोरों जन्म पर्थस्त शीत तप वपमेबाज्ञा भ्यदि जिन कर्मों को नहीं खिपा सकता, हन कर्मोको समसाधपूर्णक सामा- भिक करलेयाश्ता खीब प्रापे दमे सिप बेता दे ६ साभायिक की पइ कष्ट मदिसा है । रौर मी षडर जे के दि गया मोररुख, थे बि यम पच्छंति ने गमि्संति | है सम्बे सामाइअ, पमाषिण मुलेयर्म्स । 54) अयोल--जो कोई मोझ गया जाता है भर जायग)ः ध्‌ सव सामायिक्के मादाप्म्म से ही ।।ग। इसके शखावा पपौर मी कडा र-- फं तिम्वेम वेषेण, फिंच अमेण किं घरितेण ! समयाएविण्पुक्वो न हु दमो षद पिन ह टद्‌ ॥८॥ अर्यात्‌ यैता कोद तीतर वप तपे, जप जपे, पा दम्ब अरित्र पारख करे धरज्तु समवा ( सममव ) क चिना शिसौको मोष हरं नदी इती मही मोर होगी मी नदी १५८




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