नीना | Neena

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Neena by अमृता प्रीतम - Amrita Pritam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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एक-दो तुरियां तेज को भी चुसा दीं । रात पड़ती जा रही थी । नसों ने वच्चों को अच्छी तरह गरम कपड़ों में लपेटा भौर उन्हें उनके वाई की भोर ले चलीं 1 एक नसें ने तेज की बोर अपनी वांहें फलाई; वह उसे भी दूसरे वच्चों के साथ ले जाना चाहती थी लेकिन तेज ने नसें के मुंह की भोर देखते ही ज़ोर से राजवंती का कंधा दवा दिया । . *'मभी नहीं ' **कल-परसों देखा जाएगा ।” राजवंती ने कहा और तेज को भींच लिया 1 कुछ दिनों में ही तेज चंगा-भला हो गया । उसका स्वास्थ्य निखर भावा था गौर उसकी उदासी अन्य बच्चों के साथ से, 'राजवंती के प्यार से और सरसों के विशेष देख-रेख से दूर हो गई थी । अव नसें उसे अपने वार्ड में ले जाती थीं । वा में जितने वच्चे थे, वहां उतने ही पंघूड़े पड़े थे । तेज.सबके पंघूड़े के पास जाता, छोटे बच्चों के हंसने और रोने को भाश्चये से देखता । अपनी मायु के बच्चों के साथ खेलता बौर कई वार उनके साथ खेलते- खेलते वहीं सो जाता । नर्ों ने स्टोर में से एक छोटा-सा पलंग निकलवा लिया । वे सोएं हुए तेज को यार्ड में ही सुला लेतीं । कभी-कभी जब तेज को नींद न आती तो वह “माताजी के घर जाऊंगा”--कहकर राजवंती के पास बंगले में जाने की जिद करता । उसकी देखादेखी अन्य वच्चे भी कुछ जिद करते, लेकिन उन्हें वहां सोने की मादत पड़ चुकी थी, थोड़ी-सी जिद के बाद वे चुप हो जाते थे । तेज को भी नें वेठा लेतीं । लेकिन कभी-कभी वह अपनी जिंद में राजवंती के पास आकर ही दम लेता 1 अपनी के बच्चों के साथ में भी तेज के लिए एक आकर्षण था । सुवह-सवेरे ही वह फिर वार्ड की और भाग जाता । जब न्सें सब बच्चों को नहजा-धुलाकर तैयार कर लेतीं, राजवंती स्वयं वार्ड में आती और अपने सामने बच्चों को नाश्ता कराती । छोटे बच्चों के लिए दूध की वोतलों को गरम पानी में. उवाला जाता । जब यड़े बच्चें खा-पी चुकते तो राजवंती एक नसे को साथ लेकर सब वड़े वच्चों को बाहर के ग्राउंड में ले आती । चच्चें हंसते, खेलते भाग-दौड़ करते । अब तेज उनमें खूब हिल-मिल गया था । अब वह अधिकतर वच्चों के वाई में ही सोता था । सुवह यदि राजवंती के आने में ज़रा देर हो जाती तो वे तीनों-चारों ' बड़े वच्चे वैचेन हो जाते । नर्सों से कहते कि उन्हें जल्दी तयार किया जाए, वे माताजी के पास जाएंगे। नें उन्हें कपड़े पहनातीं, जुरादें और दूट ' पहनातीं और वड़े यल्नों से उन्हें मनाती । नीचा / १४




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