हिन्दी - साहित्य | Hindi - Sahitya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
290
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)७ [ साहित्यकार
इघर डा० हीरालाल जेन, मुनिजिन विजय, नाथूराम प्रेमी श्रादि ने पर्याप्त जन
ग्रंथों की खोज की है । श्राचायं देवचन्द्र सुरि विक्रमी सं० ९१० में वर्तमान थे ।
इन्होने भ्रनेक जैन ग्रत्थो का प्रणयन किया । नयचक्त (लघु) इनका लिखा हृग्रा हे 1
इनके दिष्य माइतल्लधवल ने वृहत नयचक्र की रचना की 1 नयचक्र के अरतिचक्ति देवचन्
के र्थो के नाम ह दर्ानसार, भाव संग्रहः श्राराधना सारं श्रौर तत्व सार । इनकी माषा
हिन्दी के भ्रत्यन्त निकट की हं । उदाहरण स्वरूप नीचे उनकी एक रचना दी जा रही हं :-
कादं बहूत्तदं संपयदं जई किविणहं घरि होड 1
उवहि णीरन खार भरिड पाणिड पियइ ण कोड ॥
कवि पुष्पदन्त जेन साहित्य के महाकवि माने जाते हं । यह् दव परिवार में उत्पन्न
हुए थे रौर वाद मे इनका परिवार जेन धर्मावलम्वी हो गया था । इनके पिता का नाम
केशव महर तथा माका नाम मुग्धा था । ये श्रत्यन्त ब्रात्माभिमानी तथा टीम-टाम
वाले कवि थे । इन्हें ्रपनी कविता पर स्वयं गवं था । इन्होंने अपने को झसिमान में
काव्य-रत्वाकर झ्रादि उपाधियों से विभूषित किया था । ये श्रत्यन्त मस्त जीव थे;
साथ ही दुबले-पतले, कुरूप ग्रौर निर्धन भी । राष्टू-कूट वंश के महाराज कृष्णराज तृतीय
के प्रघान मन्त्री श्नौर उनके पुत्र के श्रा्रय मं रहते थे । इनके ग्रन्थो के नाम हं तिसः
महापुरिस गुणालंकार, त्रिषष्ठि महापुरष गृणालंकार, णाय कुमार चरिड, नाग कुमार
चरित, जसहुर चरिउ, यशोधर चरित श्रौर कोश ग्रस्थ । इन्होने खंड काव्य और प्रवन्व
काव्य तो लिखा ही, ये विद्वान तथा पडित भी थे । इन्होने भ्रलंकारो का श्रत्यत सुन्दर
निरूपण किया हे । कुच लोगो का एसा भ्रम ह कि शिव सिह संगर दारा उल्लिखित
हिन्दी के प्रथम कवि पुष्प ये ही हं । पर उक्त पुष्प की कोई भी रचना झाज तक उपलब्ध
नही ह । इन्दोने कवि के प मे अत्यन्त सफलता प्राप्त कौ । इनकी एक रचना का प्रंश
उदाहरण स्वरूप नीचे दिया जा “रहा हं ।
संघ्या वर्णन
श्रत्यमिई दिणेसरि निद सडणा ।
तिह पंथिय यिय भाणिय सडणा ।
जिहू फुरियउ दीवय दिस्तियड ।
तिह कंहाहुरणह दिस्तियड 1
निह संस्र राएुं रंजियय ।
तिहि वेसा राएं रंजियउ ।
निह भवणल्लड संतातियउ 1
लिह दिसि दिसि तिमिरइं मिलियाई ।
तिह दिसि दिसि जारइ सिलियाइं। .
जिह॒'रयणिहि कमलइं मउलियाइं ॥
तिहू विरहिणी घयणइं, मउलियाइं ॥।
तिस महापुरिष- गणालंकार-- (महापुराण)
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