मरुकुंज | Marukunj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चेतनरन ओर श्चय ५, सेगकी विकृति कैसी सी अवस्थामें क्यों न हो, अथवा रोगके समी लक्षण चहे जैसे क्यो न दों, अगर वह अपना हित नहीं समझता है, तो झुसका नाश निश्चित है । छेकिंन, अगर रोगी यह जान के क सकरा सारा. भविष्य संक्यमे है ओर फिरसे नीरोग होनेके लि वह हर तरहका त्याग करे, तो तन्दुरुसं होनेकी संभावना न रहते हु भी, झुसके लिभे आशा रहती है ।”” ५ । ^ २ । . चेतनरज ओर क्षय जव सूरजकी किरणे किसी छोटे ठेदकी राह घरमे आती दहै, तो ` कमी-कमी उनके ` अलेलेमे अनगिनत ॒रजकण झुड़ते नजर आते हैं । य॒ रजकण सिर्फ असी जगह नहीं होते, बल्कि सारा वातावरण भिनसे ` भरा रहता दै । चकिये बहुत ही सूक्म ददते है, असल आम - तौर्‌ प्र दिखाभी नहीं पड़ते और न स्पर्स द्वारा ही जाने जाते हैं । ये ` रजकण. जङ्‌ अर्थात्‌. निजीव होते है । असे ओर भिनसे भी वहुत ही . सूक्ष्म --जितने सूक्ष्म कि चिना .खुर्दीन या सूक्ष्मदशक यंत्रके खाली आँखों नजर न अनेवारे---भिन्न-सिन्न प्रकारके अनगिनत सजीव चेतनरज सखष्ठिमिं मौजूद हैं । अंप्रेजीमें ये “ चैंक्टेसिया * कहलाते हैं । ये ज़मीन, हवा आर पानीमें' हर॒जगद कम या ज्यादा तादादमें फैले रहते हैं; ये आदमीके, शरीर पर और झुसके शरीरके अंदर थी पाये जाते हैं । सष्टिकी विविध वस्तुओंकी झुतत्ति, स्थिति और लयके लिभे ये ज़रूरी हैं । जिनके “विना स्ष्टिका बहुतेरा व्यवहार रुक सकता है । दूधका दही बनानेमें भी ये सक्षम चेतनरज निसित्त बनते हैं । चेतनरजके कओी. प्रकार भसे हैं, जो सुक्ष्मदशंक यंत्रकी मददसे .. पहचाने गये हैं । झुनमें कुछ ही का सम्बन्ध मठुष्यकी देहमें पैदा होनेवाले -




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