मरुकुंज | Marukunj

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Marukunj  by काशिनाथ त्रिवेदी - Kashinath Trivediजीवराज महेता - Jivraj Mahetaमथुरादास - Mathuradas

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काशिनाथ त्रिवेदी - Kashinath Trivedi

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जीवराज महेता - Jivraj Maheta

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मथुरादास - Mathuradas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१ उद्देश्य प्रकृतिका नियम तो यह माहम होता है कि मनुष्य अपने जीवनका आरम्भ नीरोग दशामें करे । पेदा होते ही तन्दुरुप्तीका खयाल रखनेकी क़िम्मेदारी मनुष्यके सिर आ पडती है | इस काममें मनुष्य जिस हद तक असफल रहता है, उसी हृद तक वह वीमारीका शिकार_ बनता है । दूसरे शब्दोरमे, सव तरदके रोगोंकी पूरी-पूरी रुकावट से ही तन्दुरुस्तीकी हिफाजत होती है । छेकिन अनगिनत आदमी ऐसे हैं, जो कई तरहकी अपनी और पराई मजवूरियोके कारण इस आदर स्थितिसे वचित रद जति हैं । शरीरे जो अनेक रोग वार-बार पैदा होते हैँ, उन सब रोगोंमें निराला एक रोग है, जो राजरोग था क्षयरोग कहलाता है । यह रोग बहुत पुराने ज्ञमानेसे दुनियाकी सभ्य जनताके पीछे पडा है, ओर आज भी इसका वडा क्षोर है । राजरोग मनुष्यके तन, मन ओर धनका शोषण करनेवाला ओर एक हरूम्बे अर्स तक दिलमें आशा-निराशाकी लहरें पेंदा कर आदमीको थकानेवाला रोग सावित हुआ है । इसका नाम सुनते ही छोगोंकी आँखोंके सामने अंधेरा छा जाता है । लेकिन दरअसछ हालत मगजलकी तरह एकदम निराशा- जनक नहीं है । आयुर्वेद या बेबकमें ऐसा कोई रामवाण व चिन्तामणि उपाय नहीं है, जो इस रोगको मिटा सके; फिर भी इसका रोगी हमेशा अभागा ही नहीं माना सया है, न यह्‌ रोग




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