पेड़ गिरता हुआ | Ped Girta Hua
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
643 KB
कुल पष्ठ :
82
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बहार लौट ही आई तो बया कि तूही न था
नजर को जौके-तमाशा-ए-रंगो-बू ही न था
अवस किसी से थी हुस्ने-क़दूल की उम्मीद
हमे सलीक्-ए-इज्हारेआरजू ही न. था
फिर उस सफ़र का तो लाहासिली ही हासिल थी
क़दम किसी का सरे-रहे-जुस्तजू ही न था
अब उस नजर ने भी आख़िर यही गवाही दी
कि चाक दामने-दिल कायिले-रफ़ू ही न था
कुछ और लोग भी थे जो हमें अज़ीज रहे
सबब हमारी उदासी का एक तू ही न था
सबव कुछ उस के तगाफ़ुल का पूछते उस से
रहा ये रंज कि वो शख्स रूवरू ही न था
जला दरखूत थी अपनी भी जिन्दगी “मर्मर
रंगों में जिस की कोई जर्ब-ए-नसू ही न था
खोके-दमाशा-ए्-रगो बू==रंग घौर गघ को देखने कौ सखि, प्रस न=गयय. वी
थद्धा से स्वोड़ति, _ सलीक-ए-इर्हारे-भारजू स््>बाकाका की अभिव्यर्जित की ध
साहाधिौ = अप्राप्य. हासिलन्तप्राप्य. सरे-रदे-ुस्तनू खोज की राह पर योग्य.
दिलन्क्दिल के दामन का फटा हुआ भाग. काविते-रय्य की सावना
प्रदयोडस=श्रिय, तयाहूलन्=य्ेश्रा. जञ-ए-नमून्= विकसति हे
वेद शगिरता हुआ 17
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