पेड़ गिरता हुआ | Ped Girta Hua

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Ped Girta Hua by मख्मूर सईदी - Makhmoor Saidi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1 नल पे-ब-पे सम्तेलफर अपनी बदलता क्यूँ है चलते रहना है तो रुक-एफ के सभलता क्यूँ है तेरे माजी की हर उलझन, तिरा अपना साया अपने ही साये से कतरा के निकलता क्यू है कब सरे-आवे-रवा, नक्श किसी का ठहरा मौज दर मौज ये इक अक्स मचलता क्यू हे तितलियाँ है ये मुलाकात की रगी घडिया रग उड जायेगा, पर इन के कुचलता क्यूँ है नम हवाओ में है क्सि गम बदन की खुशबू सद भोकों से ये शोला सा निकलता क्यूँ है आगे इस मोड के, रस्ता हो न जाने कसा दफअतन्‌ आ के यही पाव फिसलता क्यूँ है बच सका बुछ भी नजब कहरे-हवा से 'मख्मूर' इवा दिया आस की चौखट प' ये जलत्ता क्यूँ है दे द पे निरतर सस्ते-सफ़र--यात्रा को दिशा. माजीब्ज्अतीत सरे आबे रवाँ-बहते हुए पानी पर नकश-+“निशान भौज दर मौजम-ज्लद्र पर लद्दर नमन्‍्च्भाद दफ़्अतन्‌->अचानदर कदरे-हवा#-हवा की विपदा पेड गिरता हुआ. 25




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