आप्तमीमांसा तत्वदीपिका | Aptamimansha Tatvadeepika

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Aptamimansha Tatvadeepika by उदयचन्द्र जैन - Udaychnadra Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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. ६ अभिलापा थी कि इसका प्रकाशन शीघ्र हो । अत इसके प्रकारानमे तथा प्रकादानकों महत्त्वपूर्ण वनानेमे आपका विशेष योग रहा है। भन्तमे अपने प्रारम्भिक गुरु और अग्रज सहयोगी डॉ० दरवारीछाल जी कोठिया का साभार स्मरण किये विन्ता इस प्रकान-प्रकरणको पूणं करना भेरे लिए सम्भव नही है । श्री भाई वावूलाल जी फागुल्ल मेरे सहपाठी ह । हम लोगोमे प्रारभ से ही दो भाइयोकी तरह स्नेहपुणं सम्बन्य रहा है, जो उत्तरोत्तर वढत्ता ही गया है। आपने वडी ही तत्परतासे मेरी रचनाको शीघ्र मुद्रित करनेकी जो कृपा कौ है वह्‌ सदेव स्मरणीय रहेगी । यह कहनेकी तो कोई आवग्यकता नही है कि आपके प्ेसमे कलापूणं, सुन्दर तथा आकषक मुद्रण होता है। मै उक्त सभी गुरुजनो ओर हितेपी महाचुभावोका आभार किन दाव्दोमे व्यवतत करूँ। मै तो यही अनुभव करता हूं कि मेने जो कुछ सीखा तथा अपने जीवनमे जो कुछ थोडी-सी प्रगति की वह सव अपने गुरुअनों भीर हितैपी महानुभावोके आशीर्वाद और कृपाका ही फल है । आप्तमीमासा, अष्टशती गौर अष्टसहखी इन तीनोका विषय अत्यन्त विरष्ट ह } सने अष्टशती ओर अष्टसहस्रीके प्रकाशमे आप्त- मीमासाके त्तत्वोको त्तत्वदीपिकामे स्पष्ट करनेका प्रयास किया है । फिर भी विपयकी क्लिष्टता तथा गूढताके कारण अनेक स्थलोमे चुटियोका होना सम्भव है। अत विज्ञ पाठकोसे अनुरोध है कि वे मेरी चुटियोके चिपयमे मुक्ते सूचित्त करनेकी कृपा कर जिससे भविष्यमे उनको सुधारा जा सके | भ वाराणसी उदपचन्द्र जैन २६ जनयरी, १९७५




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