नैतिक पाठमाला | Naitik Pathmala
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
207
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)राष्टीय तरेम गप्लैय प्रतिष्ठा ६
हो गए ।
भद्दा ने अपन कोपाव्वयकष को चता कह
“यद्यपि १ जलाकी जर रत नहीं है, फिर सी राजगूह
में आया हुम्रा वोई भी व्यापारी नि ।५ होकर नही
लौद सकता । इसिए तुम जाओं श्र इनके रत्न-
कथन खरीद लो 1
व्यापारी न्तभित रह गए। उन्टोने सोचा--भद्ा
ने रत्तवबली का भूत्थ ठीक से समभा नहीं है।”
उन्होंने फिर दोहुर।या कि जर्येक व अल का मुल्य सब
लाख रनण मुद्रा है । भद्वा ने उन्दं वही विठा दिया । बोडे
समय में कोपान्यक्ष वीस लाग €पणमुद्राएँ ले अ।था ।
९।जबह् के वारे मे ५लप्ं धारणा मत्त फलान।”-नयह
५६ हते भद्रा ने सारे +ल खरीद लिए । न्य।पारी
स्वप्वलीक मे विचरने लगे । ७६१ सोचा-'जभ९९
हमसे कोई भूल हुई है । जहा एक महिला धत्तन। साहस
कर सक्ती है वहा पुरुषो का क्न! ही क्या ?' श्रव
वे जहाँ भी गए वहा रजगृह की प्रतिष्ठा का सौरभ
फलाते गए ।
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