उत्तर प्रदेश में भूमि उपयोग एवं उत्पादकता का अध्ययन | Uttar Pradesh Mein Bhoomi Upyog Evam Utpadakta Ka Adhyyan

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Uttar Pradesh Mein Bhoomi Upyog Evam Utpadakta Ka Adhyyan  by कमलेश कुमारी - Kamlesh Kumari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न के आधार पर भूमि - उपयोग में सुधार किस प्रकार किया जाए । भूमि के अध्ययन का अन्तिम लक्ष्य ऐसी योजना को कार्य रूप मे परिणित करना है, जो भविष्य में उसके उपयोग का विस्तृत आधार प्रस्तुत कर स्के ।2 शोध का मुख्य उददेश्य भूमि उपयोग प्रकारों के साथ ही शस्य प्रतिरूपों एवं उनमें संतुलन स्थापित करना है, जिससे भूमि का विशिष्ट भाग किस प्रकार के उपयोग के लिए सबसे अधिक अनुकूल है ? उसका निर्णय किया जा सके । इसके साथ ही साथ यह भी आवश्यक है कि कृषित भूमि की प्रत्येक इकाई के लिए उपयुक्त फसलों को अपना कर उत्पादकता में कैसे वृद्धि की जाए ।> भूमि उपयोग एवं उत्पादकता का सम्बन्ध जानने के लिए किसी क्षेत्र विशेष का सूक्ष्म विश्लेषण करके यह प्रयास किया जाना चाहिए कि भूमि उपयोग, उसके प्रारूप एवं उत्पादकता में किस प्रकार का परिवर्तन हो रहा है । इसके लिए यह आवश्यक है कि समेय - समय ' पर विभिन्न कार्यों के लिए प्रयुक्त भूमि का अध्ययन किया जाए, जिससे भूमि उपयोग का अधिक सदुपयोगः सुनिश्चित किया जा सके एवं उसमे सुधार हेतु उचित सुझाव दिए जा सकें । इसी उददेश्य से यह शोध विषय चुना गया है । भूमि एवं भूमि संसाधनों की भौगोलिक संकल्पना : भूमि उपयोग के संदर्भ मे भूमि कौ सकल्पना एवं उसके मुख्य पहलुओ का ज्ञान होना आवश्यक है । भूमि उपयोग भौगोलिक अध्ययन का एक महत्वपूर्ण अंग है | इस रुला मे भूमि की भौगोलिक संकल्पना को जानना आवश्यक होता है | भूमि की संकल्पना निम्न प्रकार से की गयी है : (1) भूमि : भूमि को सामान्य अथों में लोग धरातल के ठोस भाग को कहते है,जिस पर मानव निवास करता है, आवास बनाता है तथा जीविकोपार्जन करता है । परन्तु भूगोल वेत्ताओं री ওরা ওর: সরা এত বত পাট বর आम 2* 520024550৮5 02200. 00013272502 22559580550. ¶ 21151] (জট) 0১৮০4 00505175180. 1716515, 24८8 011৮5205155 41966+ ८.6. दीन बन्धु - बिहार के कटार प्रखण्ड मे भूमि उपयोग परिवर्तन प्रतिरूप (अप्रकाशित शोध प्रबन्ध), 1993, पृ0 7.




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