नैतिक पाठमाला | Naitik Pathmala

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Naitik Pathmala by कमलेश कुमारी - Kamlesh Kumari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राष्टीय तरेम गप्लैय प्रतिष्ठा ६ हो गए । भद्दा ने अपन कोपाव्वयकष को चता कह “यद्यपि १ जलाकी जर रत नहीं है, फिर सी राजगूह में आया हुम्रा वोई भी व्यापारी नि ।५ होकर नही लौद सकता । इसिए तुम जाओं श्र इनके रत्न- कथन खरीद लो 1 व्यापारी न्तभित रह गए। उन्टोने सोचा--भद्ा ने रत्तवबली का भूत्थ ठीक से समभा नहीं है।” उन्होंने फिर दोहुर।या कि जर्येक व अल का मुल्य सब लाख रनण मुद्रा है । भद्वा ने उन्दं वही विठा दिया । बोडे समय में कोपान्यक्ष वीस लाग €पणमुद्राएँ ले अ।था । ९।जबह्‌ के वारे मे ५लप्ं धारणा मत्त फलान।”-नयह ५६ हते भद्रा ने सारे +ल खरीद लिए । न्य।पारी स्वप्वलीक मे विचरने लगे । ७६१ सोचा-'जभ९९ हमसे कोई भूल हुई है । जहा एक महिला धत्तन। साहस कर सक्ती है वहा पुरुषो का क्न! ही क्या ?' श्रव वे जहाँ भी गए वहा रजगृह की प्रतिष्ठा का सौरभ फलाते गए ।




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