कुहासे में उगता सूरज | Kuhase Men Ugata Sooraj
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
274
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा - Sadhvipramukha Kanakprabha
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उसने लडकी के माता-पिता ते भी वात की । उन्होंने कहा-'लड़का अच्छा है, स्वस्थ
है, पर ब्राह्मण नहीं है, इसलिए शादी नहीं हो सकती ।” चिकित्सक उनका मित्र
था। उसने पूरी शक्ति लगाकर उनको समझाया और इस वात के लिए सहमत
कर लिया कि लड़की लड़के से मिलकर पूछ लेगी कि क्या वह अंधेपन की स्थिति
में उसके साथ शादी कर लेगा |
लड़की पास ही बैठी थी । माता-पिता की सहमति पाते ही वह प्रसन्नता से
भर उटी । सुखद भावी की कल्पना में उतरकर उसने आंखें खोलीं तो उसकी ज्योति
लौट आई थी |
जैन दर्शन का एक महत्त्वपूर्ण शब्द है-'सम्यक् दृष्टि” । यह धर्म या अध्याम
की बुनियाद है । जब तक दृष्टिकोण सही नहीं होता, धर्म या अध्यात्म की यात्रा
आगे नहीं बदर सकती । ज्ञान ओर आचरण की विशिष्टता भी सम्यक् दृष्टि के साहचर्य
से सार्थक बनती है । जिस व्यक्ति का दृष्टिकोण सही नहीं होता, वह निषेधातमक
भावों मे जीता है । उत्तेजना, अभिमान, वंचना, लालसा, हीनता, मानसिक अवसाद,
ऊव, ईर्ष्या, असन्तोष, आग्रह आदि एेसी व्याधियां है, जो दृष्टि के मिष्यात्व से
पनपती है । इन व्याधियों का उपचार है विधायक भावों का विकास । जव तक
विधायक भावों का विकास नहीं होगा, व्यक्तित्व का सही निर्माण नहीं होगा । व्यक्तित्व
के निर्माण में विचारो, भावनाओं एवं व्यवहारो का पूरा हाय रहता है । इसके लिए
व्यक्ति को अपनी विचार-शक्ति, इच्छ-शक्ति, संकल्प-शक्ति जर कर्म-शक्ति को
प्रशस्त एवं पुष्ट करना होगा |
स्रामे पे गना ज ,) च
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