श्रीमद् भागवत महापुराण में विष्णु का स्वरुप एवं वैष्णव सिद्धान्त | Shrimad Bhagawat Mahapuran Mein Vishnu Ka Swaroop Ev Vaishnav Siddhant
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
281.86 MB
कुल पष्ठ :
299
श्रेणी :
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ओम प्रकाश शास्त्री - Om Prakash Shastri
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श्रीमती सुमन शर्मा - Shrimati Suman Sharma
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)एम वेदों में विष्णु का स्वरूप <:-
भारतीय संस्कृति विश्व की पुरातन संस्कृतियों में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं, इस
अक्षय स्रोतों में वैदिक वांगमय जगत विदित है, वैदिक वांगमय में 'ऋग्वेद संहिता' प्रथन
स्थानीय है। यह विश्व का प्राचीनतम ग्रन्थ है। भगवान मनु ने ऋग्वेद को सर्वज्ञानमय
और शंकर भगवत पाद ने सर्वज्ञकल्प कहा है, अतएव ऋग्वेद का प्राचीन
साथ-साथ विश्व में विशेष महत्व है, सृष्टि के आदिकाल से ही विष्णु में ईश्वरीय तत्व
रूप में सम्पूर्ण सृष्टि को प्रभावित किया, फलतः: सम्पूर्ण ब्रहमाण्ड में चेतन-अचेतन
प्राणियों द्वारा ईश्वरीय रूप में विष्णु को स्वीकार कर उनकी स्तुतियाँ की गयीं | सर्वप्रथन
ऋग्वेद के प्रथम मण्डल के 22 वें सूक्त में विष्णु का स्तुतियों के द्वारा वर्णन प्राप्त होता
है।
इस सूक्त के मंत्र दृष्टा मेघातिथि काण्व ऋषि का वर्णन करते हैं:-
अतो देवा अवन्तुनो यतो विष्णुर्विचक्रमे |
पृथिव्या सप्तधाममिः: 11 (ऋग्वेद म0० सू.म, 16)
इस मंत्र में कहा गया है कि जिस भू-प्रदेश से भगवान् विष्णु ने सप्तधान भूत
गायत्री आदि छन्दों की सहायता से पादक्रमण प्रारम्भ किया था। उसी भू-प्रदेश से सभी
देव भगवद् भक्तों की रक्षा कर ऋग्वेद के प्रथम मण्डल के 22 वें सूक्त के 16 वें मंत्र रू
21 वें मंत्र तक भगवान विष्णु के पराक्रम का वर्णन करते हुये विष्णु की सुक्ति की गयी
है।
इस सम्पूर्ण विश्वरूपी ब्रह्माण्ड में जो कुछ दिखायी देती है वह सब उसी व्यापल
विष्णु परमेश्वर का पराक्रम है। सात्विक, राजस, तामस ऐसे तीन स्थानों में उन्होंने तीन
पाद रखे हुये हैं, द्युलोक सात्विक, आन्तरिक्ष लोक राजस और भू-लोक तमोगुण प्रधान
है, यहां उनके वे तीन पद कार्य करते हैं। अतएव दो लोक स्पष्ट दिख रहे हैं, किन्ट
बीच का अन्तरिक्ष लोक अदृश्य है, विद्युत भी अदृश्य है, पर कभी-कभी उसकी चमल
दिखती है। इसी प्रकार बीच के स्थान में होने वाला उनका कार्य दिखता है।
... त्रिविक्रम अवतारधारी परमेश्वर विष्णु ने इस दृश्यमान सम्पूर्ण जगत को उद्देश्द
कर इसी परिक्रमा की, उन्होंने तीन प्रकार से अपने चरण रखे उनके धूलियुक्त पादस्थान
में यह सम्पूर्ण जगत अन्तर्भूत हो गया।
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