विजिया सुन्दरी नाटक | Vijiya Sundari Natak

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Vijiya Sundari Natak by नियामत सिंह जैन - Niyamat Singh Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ऐक्ट १ १५ क्यों गाली दी थी पट्सावती-- चाल क्वाली १ मुझ को मालूम न था मेरी हंसाइ होगी । सरे बाज़ार. मेरी यों वेहयाईं होगी ॥ २ चनके मुजरिम सुझे दरवार में आना होगा । हथकड़ी में मेरी नाजुक ये कलाई होगी ॥ ३ देवदत्ता ने हँसी करके कहा था मुक्त से । खूब हो तेरी अगर इस से सगाई होगी ॥ ४ सुन के ये वात कड़ी बल मेरे चितवन में पड़े । इस से गुस्से में कहीं पीक गिराई होगी ॥ ५. ये बिगड़ घरको गया कहके कि सससझूरँगा ठुझे । में न समभी थी यहां तक ये बुराई होगी ॥ ६ में ख़तावार हूँ जो चाहो सज्ञा दे दीजे । सोच रक्खा है कि मेरी न रिहाई होगी ॥ राजा--कष्टांगार तुमने फिर घर जाकर क्या किया ? काप्टागार-- चाज्ञ घनसारा टक दिरसो हा को छोड मत सियां देश थिदेश फिरे भार 1 १ अपना बदला लेने के लिये फिरजमाकिया मेंने कुद धन । गे कुछ वसतर धोवीसे लेकर संध्याकें समय जल्दी चन ठन ॥ नर रदुलन्य मदद जे पर आपन्था




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