अहिंसा - दर्शन | Ahinsha-darshan
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
358
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)्रातिस]- देन
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द्यह्धिसा का प्रादुरभावि श्योर विकास
मानव काल की श्रनेकों घाटियों को पारकर श्राज तक पहुँचा है ।
इन घाटियों के पार करने में उसे अनेकों अनुभवों का लाभ मिला है ।
उसे दुर्गम पथों को पार करने के लिये नये-नये
मानव की श्राय उपाय सोचने पड़े हैं; उसके समक्ष जो कठिनाइयाँ
मनोमूभिका श्राती गर, उनका समाधान पाने के लिये उसके
| मनम सदाही एकं श्रद्म्य लालसा रही है
और इस लालसा ने ही उसके पथों मे परिवतंन किया है, उसकी
मनोभूमि मे परिवतंन किया है | इस दृष्टि से श्राज हम यह विश्वास-
पूर्वक कहने की स्थिति में हैं कि मानव काल की श्राद्य घाटी में जो था,
वह् श्राज नहीं है, उसमे हूत परिवतंन हो चुके है । उस समय से
श्राज उसका रूप दल गया, सचि बदल गहै, रहन-सहन श्रौर परिधान
अदल गया, श्रावास शरीर संस्तरण बदल गया, श्रावश्यकताएँ तर
उनकी पूर्वि के साधन बदल गये । कुल मिलाकर जीवन के मूल्य और
दृष्टिकोण बदल गये ।
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