कामायनी सौंदर्य | Kamayani Saundarya
श्रेणी : आलोचनात्मक / Critique
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
415
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नानी
कामायनी-सीन्टय [ जय
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के दर्शकों की भीड़ लगी हुई है । परन्तु दर्सफ स्वयं ध्रा्रस्णस्यरूप
हो जानें हूं । यदि चंद अप टन फटी उठपाता !
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ग्म्त में मनु ने देखा फि जीयन स यद मधुर मार शरस्य
हो गया दि । उन्होंने संकल्प किया----दम, नेयम् छादि दिननी
ही चाधाय मरे माम पयो न चाय, य मे नहीं मानने का 11
व संदेद को स्थान नधरा । ददु स्य, स्प, समश्वार्गधस
मसे सुपभा को पास पर्स लेगा ~ * धीरे-धीरे उसे नींद
प्यागई।
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यप्र मं एतः भ्यनि मनो--तल-भेपिन प्राया प्र्
यला गया, परन्तु भी घूम है । से फाम है । देय मेरी ही
हो उपासना फरते थे | मे उनके विनोद को सायन था । यस्तुनः में
ही उनका कतिमय जीवन था ।
मेरी सी रति 'यनाडि घासना है । च्यः प्रद्ति मे जव
मष्टा उन्मेप हुया, तो यही उसकी 'चाद के रुप में थी । मूल
प्रयूति-रुपी लता के सधटास से की दे एसे इस दोनों एम
दोनों का ननम होते ी पद मूल-शाति सक्रिय हागई--परमागाु
सुर््रि रचमे लगे । दम दोनी उस समीन सष्टि सें कोर श्री परकर
कीरमाति साय साथ रटने लगे | दैव-मष्टि नित्य चौधनमय थी
दम उसंमं भगव शरीर प्याससेष्टरमदर य । मती म्री रति सर
वालाश्चांकीदचंत्री यनी थी) म वृष्णा बद्राताथा श्वर व उन्हें
तृप्ति दिखल्ाती थी। `
देव मिट गये शोर मिट गया उनके साथ ही मेरा घट
विनोद । मेरी केवल चेतनता ही शेप रद गई पीर श्रव रन
ही रद गया हूँ । पद म वात्या-उदूगम था परन्तु श्रव म संसति
की श्रगतिनस्वरूप हूँ; मैंने देवन्युग में जो किया, मानव की शीतल
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