कामायनी सौंदर्य | Kamayani Saundarya

Kamayani Saundarya by फतह सिंह - Fatah Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नानी कामायनी-सीन्टय [ जय ही ~~~ के दर्शकों की भीड़ लगी हुई है । परन्तु दर्सफ स्वयं ध्रा्रस्णस्यरूप हो जानें हूं । यदि चंद अप टन फटी उठपाता ! क ग्म्त में मनु ने देखा फि जीयन स यद मधुर मार शरस्य हो गया दि । उन्होंने संकल्प किया----दम, नेयम्‌ छादि दिननी ही चाधाय मरे माम पयो न चाय, य मे नहीं मानने का 11 व संदेद को स्थान नधरा । ददु स्य, स्प, समश्वार्गधस मसे सुपभा को पास पर्स लेगा ~ * धीरे-धीरे उसे नींद प्यागई। ९४ न दि # 1 ५ यप्र मं एतः भ्यनि मनो--तल-भेपिन प्राया प्र्‌ यला गया, परन्तु भी घूम है । से फाम है । देय मेरी ही हो उपासना फरते थे | मे उनके विनोद को सायन था । यस्तुनः में ही उनका कतिमय जीवन था । मेरी सी रति 'यनाडि घासना है । च्यः प्रद्ति मे जव मष्टा उन्मेप हुया, तो यही उसकी 'चाद के रुप में थी । मूल प्रयूति-रुपी लता के सधटास से की दे एसे इस दोनों एम दोनों का ननम होते ी पद मूल-शाति सक्रिय हागई--परमागाु सुर््रि रचमे लगे । दम दोनी उस समीन सष्टि सें कोर श्री परकर कीरमाति साय साथ रटने लगे | दैव-मष्टि नित्य चौधनमय थी दम उसंमं भगव शरीर प्याससेष्टरमदर य । मती म्री रति सर वालाश्चांकीदचंत्री यनी थी) म वृष्णा बद्राताथा श्वर व उन्हें तृप्ति दिखल्ाती थी। ` देव मिट गये शोर मिट गया उनके साथ ही मेरा घट विनोद । मेरी केवल चेतनता ही शेप रद गई पीर श्रव रन ही रद गया हूँ । पद म वात्या-उदूगम था परन्तु श्रव म संसति की श्रगतिनस्वरूप हूँ; मैंने देवन्युग में जो किया, मानव की शीतल




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