प्रियड्करनृप कथा | Priyadkaranrip Katha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
191
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१४ श्रह्छवना
कीतरामस्लोचस्प पिका १५१२तमे कैकरमीयान्दे। वाग्भ
ऋकारस्य इतेरपि विधातार इमे धुनीश्वराः। दरिशब्दायगमित
` ओवीतरागस्तवस्य प्रणयितारः श्रीथिवेकसागरा रशं
विनेयाः । पै.मेररत्नगणयोऽप्येषां छात्राः । कत्र उषदेशमारा-
निवरणपरान्तस्योऽयथेखः प्रमाणम्--
* ढिखित॑ श्रीवटपद्रनगरे श्रीसोमखन्द्रसूरिधिष्यश्ी-
विशालराजसूरितच्छिप्यप॑, मेरुरत्नगणितच्छिप्याणुसंयम
सूतिंगणिना
श्रीसोमघमंगणिकृताया लघूपदेदासप्ततिकायाः प्रश-
स्तिगतेन निम्नलिखितेन पद्येन पोस्फूरीति एतेपां श्रभाव-
शाढिता--
* जगदाहादकवचसो विश्ञालराजा जयन्तु सूरिवराः
दग्धेऽपि वपुषि येषां न भस्मसाचोरपदोऽभेत् ॥ ८॥
१ चार्मटाष्ङ्कारस्य विविधा वृत्तयो धरसन्ते, तंथाहि--
(१ ) श्रीसिंहदेखगणिविरचिता टीका ( काव्यमालायों ४८ तमगुच्छकरूपेण
सुद्दिता ), ( २) श्रीजिनवधघनसूरिषिरचिता काव्यकुमुद चन्ि काख्या व्याख्या,
३) भीकेमहंसगणिरचिता बृत्ति 3 भी अनन्त महू सुतगणेदागुम्फिता
विवृतिः ( ५ ) भीराजजहंसोपाध्यायप्रणीता रीका 1
२ जिनबर ! परमारैतः स्तवस्ते
म्यरचि भया शुर्खन्दराश्य
झुव्शिउराजराजर-
युण ! मम वर्येविवेकंसपरम १० ॥
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