कणिका | Kanika

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Kanika by उदयशंकर भट्ट - Udayshankar Bhatt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १४ ) बहुत कुछ साँस शझ्रनजानी निकलती है, कभी कुछ साँस पहचानी निकलती हैं, उधर तक चल सके ऐसी न कोई, बहुत कुछ बात बेमानी निकलती है । ( १५ ) नई कुछ साँस अनजानी निकलती है, नई कुछ साँस पहचानी निकलती है; किसे कह दूँ कि तुको जानता हूँ में किसे कह दूँ तुे पह्चानता हमं बैल. १७




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