हिंदी गद्य मीमांसा | Hindi-gadh-mimansa
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
33 MB
कुल पष्ठ :
494
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ५
कविता लिखना तक झसम्भव था । हां; यह दुसरी बात दै कि
साज-दरबारों मे राज-प्रश्रय में सभी भकार की साहित्यिक च्च
हो सकती थौ । जायसी, गंग, रहीम, सेनापति तथा अन्य कवियों
ने हिन्दीमें लोकिकि ( ऽच्ट्णाः ) सादित्य कौ रचना इसी कारण
कर पाई कि या तो वे राजदरबारों के प्रभाव के निकट रहे या सम-
कालीन धार्मिक औआन्दोलनों के श्रबेग से वाहर रहे, जिससे उनके
दिमागों में वह व्यावह्)रिकता अथवा वह चुलबुलाहट उपस्थित
५. ¢ क
रही होगी जिससे उल्छृट तथा रोचक गय-साहित्य को सृजन की प्र रणा
मिलती है ।
मव, यदि कहा जाय कि मुसलमान-राज्य में और विशेष कर
मुग्रल-काल में जब एक से एक बढ़े-चड़े हास्यप्रिय दरबारी रहा करते
थे, जो रात-दिन अपने हँसी के लतीफ़ों से क्दक़हे मचाये रहते थे,
तब ऐसी अनुकूल परिस्थिति में गय लिखने की प्रथा का. प्रचार क्यों
नहो पाया बात ठीक दै, और इसका यथेष्ट समाधान करना भी
कठिन है । परन्तु इसके उत्तर में यह कहा जा सकता दै क्रि यद्यपि
मुरालों के राज्यकाल में, श्रौर खासकर अकबर और उसके निकटतम
उत्तराधिकारियों के समय में, अपेक्ताकृत खुख और शान्ति थी, तथापि
इसी प्रसंग में इतिहास साक्ती हैं कि उस समय भी नित्य नये रणकौतुक
रचे जाते थे । स्वयं अकबर ' को अन्त तक कभी राजपूतों से, कभी
सीमान्त-प्रदेशवालों से श्रौर कभी दक्षिण वाले राज्यों से लड़ते ही
बीता । सारांश यह है कि भारत में सबंत्र किसी न किसी रूप में
रण-चची व्याप्त थी । ऐसी स्थिति में भला गय-लेखकों के लिए कहां
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