आर्ष ग्रंथावली भाग 1 | Arsha Granthawali Part 1
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
22 MB
कुल पष्ठ :
149
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं राजाराम प्रोफ़ेसर - Pt. Rajaram Profesar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)९४ बेदोपदेशः
द्यति । वेदस्य परिग्रहेणायुषते, त्यागेन च सत्यु: प्रभवतीति
यथोक्तं मनुना--
अनक्यासेन वेदानामाचारस्य च वजनात्। आल
स्यादन्नदोषाच खल्युविप्राञ्जिघांसति ॥ ( मड ०५। ५,
यथादयन्नदोषा्थारस्याच्था वाऽऽचारस्य वर्जनान्मानवान्
गृत्युजघां पति, एवमेव वेदानामनभ्यासेनापि सरत्युनिांसति ।
फरान्तराण्यपि तेनेव भगवतोपदिषटणने-
यः स्वाध्याय मधीतेऽब्दं विधिना नियतः शुचिः ।
तस्य नित्येक्षरत्येष पयोदधिघृतं मधु मनु २।९०७)
भी सुधरता है । वेदके स्वीकार से आयु बढ़ता है और त्याग से
सत्यु दबारेता हे जेसाकि मनु ने कहा हैं । वेदों का अभ्यास
न करने से, आचार के छोड़देने से, आठस्य से, और अन्न के
दोष से सत्यु विद्वानों को मारना चाहता है ( मनु ५ । ४ )
जैसा अन्न के दोष से, और जेसा आलस्य से, वा जैसा आ-
चार के सागने से स्त्यु मनुष्यों को मारने की इच्छा करता दै
वैसे ही वेदों के सागने से भी सत्यु मारना चाहता है॥ `
आयु दॉद्धि के सिवा और फल भी भगवान मनु ने बतलाएडें-
जो शुद्ध पवित्र होकर नियमसे विधि पूर्वक वर्षभर स्वाध्याय
पढ़ता है । उसके हां यह स्वाध्याय सदा दूध दही थी और शहद
की घाराएं बहाता हे ( अर्थाद उसके जीवन को पुष्ट और शुद्ध
रखने वाढे पदार्थ उप्तके घरमे पानीकी तरद वहत दै) (मनु ०२।१०७)
User Reviews
No Reviews | Add Yours...